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________________ १८३ उपायनपर्व का एक अध्ययन केकय-(४८।१३),केकयों का संबंध मद्र से था। इनका देश आधुनिक पंजाब के शाहपुर और झेलम जिलों में था। कनिघम ने इनको राजधानी गिरिब्रज की पहचान जलालपुर से की है (श्रा० स० रि०, जि० २, १४)। केकय देश के कुत्ते बहुत मजबूत होते थे (रामा०, अयोध्या०, ७०।२०)। अंबष्ठ-(४८।१४) इनका उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण ( ८।२१ ) में भी हो गया है। एरियन ( ६१५) उन्हें अंबस्तनोई के नाम से संबोधित करता है। प्रीक आधारों से पता चलता है कि चिनाब के निचले हिस्से पर ये बसे हुए थे ( मैककिंडिल, वही, पृ० १५५, नो०२)। तार्य-(४८.१४)। ऋग्वेद में ( १, ८९, ६, १०, १७८ ) ग्रह एक दैवी घोड़े का नाम है। इस संबध में काफो बहस है कि यह असल घोड़ा था या काल्पनिक । महाभारत में तार्क्ष्य ( १, ५९, ५९) गरुड़ का द्योतक है। . अगस्तीया रत्न-परीक्षा (५,८१ फिनो ले लापि देयर एन दिएन, पेरिस, पृ० १८८) में तार्क्ष्य पन्ने का एक नाम है। अभिधानचिंतामणि (१०६४) में हेमचंद्र ने पन्ने को गारुत्मक भी कहा है। गरुड़ तथा पन्ने का यह सबध उस अनुश्रुति से है जिसके अनुसार गरुड़ ने असुर-बल को मारकर पृथिवों पर फेका और उसके पित्त से पन्ने की उत्पत्ति हुई (फिनो, वही, पृ० ४३)। ऊपर के वर्णनों से पता लग जाता है कि तार्क्ष्य अश्व, पक्षी, रत्न तथा मनुष्य का बोधक था, पर तार्क्ष्य लोग रहते कहाँ थे और वे वास्तविक थे या काल्पनिक, इसका ठीक पता नहीं चलता। ह्वेन्सांग (वाटर्स, भाग १) के अनुसार बल्ख और मर्व अलरूद के बीच में तालाकान नाम का प्रदेश था । सेट मार्टिन के अनुसार तालाकान की पहचान आधुनिक दर्दिस्तान से, जो हिरात के रास्ते पर है, की जा सकती है। यहाँ पर पन्ने भी मिलते थे (फेरियर, वही, पृ० ५१-५३)। यहाँ के घोड़े भी मशहूर थे ( वही, पृ० ५३ )। तार्क्ष्य शब्द का संबंध पन्ने और घोड़े से कहा जा चुका है। हो सकता है कि तालाकान ही का प्राचीन नाम तार्क्ष्य हो। . वस्त्रपा-( ४८।१४) इनका वर्णन पह्नवों के साथ आया है। इनके स्थान के संबंध में अधिक पता नहीं। महाभारत (अरण्य०, ८०।१०८ ) में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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