SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका इनमें ऊन के बने वस्त्र, रकु बकरों के रोएँ से बने वस्त्र ( श्रण) तथा पाटांबर थे । यहाँ कव शब्द की कुछ व्याख्या कर देना आवश्यक है। कोशों में रकु 1 पहचान पामीर के रकु नाम के (वुड, ए जर्नी टु दि सोर्स ऑ रकु के पश्म से कीमती नम्दे भी तैयार किए जाते थे को एक मृग - विशेष कहा है। लेकिन इसकी बकरे से है । इसका पश्म बहुत मुलायम है ऑक्सस, पृ० ५७) । ( अरण्य० २२५, ९ ) इस युग में भारतीय चीनी सिल्क से चले थे। इस प्राचीन काल में चीन से सिल्क आने में हमें कोई आश्चर्य न होना चाहिए। प्राचीन सिल्क के रास्ते पर चीन के पास एक वाशटावर की । भी अभिज्ञ हो खुदाइ उस समय स्टाइन ने की है। उसमें चीनी सिल्क का एक टुकड़ा भी मिला है। उसमें ब्राह्मो में मिला हुआ एक व्यापारिक का लेख भी प्राप्त हुआ है, जिससे पता चलता है कि भारतवर्ष के व्यापारी पहली श० में भी सिल्क खरीदने चीन जाते थे (स्टाइन, एशिया मेजर, १९२३, पृ० ३६७-७२ ) । भेट की सूची में तीसरी श्रेणी में नम्दे ( कुट्टीकृतं - सभा० २७/२३ ), हजारों कमल के र ंगवाले ऊनी वस्त्र तथा बहुत से मुलायम सिल्क और ऊन के बने हुए वस्त्र और मेमनों की खालें हैं, जिनके लिये अफगानिस्तान आज भी मशहूर है। कमलाभ से शायद उपरले स्वात के बने हुए कंबल अभिप्रेत हैं। महावणिज जातक ( जिल्द ४, पृ० ३५२, पं० १५ ) में उड्डीयान के कंबल की तारीफ की गई है। आज दिन भी तोरवा में काफी सुंदर कंबल बनते हैं (स्टाइन, ऑन अलेक्सेंडर्स ट्रैक्ट टु इंडस, ८९ ) । सूची के चौथे वर्ग में अपति के बने हुए नाना अस्त्रों का भी उल्लेख है ( ४७,२४) । यहाँ अपरांत से मतलब कोंकण से नहीं है, बल्कि सीमांत - प्रदेश से है, जहाँ के अस्त्र-शस्त्र आज दिन भी प्रसिद्ध हैं। इन शस्त्रों में लंबी तलवारे, छोटे भाले तथा परशु थे। सूची के पाँचवे वर्ग में ( ४७/२५ ) बहुत से कीमती रत्नों, शराबों तथा सुगंधित द्रव्यों का वर्णन है । इन वस्तुओं के बारे में विवरण न होने से कुछ विशेष नहीं कहा जा सकता। गंध से शायद कस्तूरी का मतलब हो । सभापर्व (४७/२६) में शक, तुखार, ककों तथा लोमश और शृंगी मनुष्यों का क्रम से वर्णन है । इनमें से शकों और तुखारों का वर्णन कर चुके हैं; शेष का नीचे दिया जाता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy