SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपायनपर्व का एक अध्ययन १७३ कथनानुसार हींग हेलमंड की घाटी की एक खास पैदावार थी ( वाटर्स', भाग २, पृ० २६४ ) । हेलम'ड नदी सपूत या प्राचीन अराखेोशिया के बीच से बहती है, पर यह प्रदेश रमठ नहीं हो सकता, क्योंकि अराखोशिया का प्राचीन नाम जागुड था, जिसका वर्णन रमठ के साथ महाभारत (अरण्य०, ४८ २१ ) में भी आया है । इसलिये रमठ प्रदेश की पहचान हम कलात रियासत के खरान जिले से कर सकते हैं । यहाँ हींग काफी तादाद में पैदा होती है और इस जिले का लगाव प्राचीन अरिया (-हिरात ) तथा अराखोशिया (कंधार) से था । अगर यह पहचान सही है तो हारहूर की पहचान हिरात से हो सकती है, जहाँ के अंगूर आज दिन भी प्रसिद्ध हैं । हैमवत - ( सभा०, ४७/१९) बौद्ध साहित्य में हैमवत प्रदेश का काफी नाम है । मझिम ने 'हिमव'त पदेस' में बौद्ध धर्म फैलाया ( महाव ंश, अ० १४ ) । हिमव ंत प्रदेश को कोई तिब्बत में मानते हैं। फर्ग्युसन इसे नेपाल में रखते हैं । शासनव ेश में ( पृ० १३ ) इसे चीन - रट्ठ में कहा गया है । साँची तथा सोनारी के स्तूपों से द्वि० श० ई० पू० की चिह्न पेटिकाएँ मिली हैं; उनके अभिलेख कासपगोत का वर्णन करते हैं, जो सब हैमवत प्रदेश का गुरु कहा गया है (साँची, जिल्द १, पृ० २९२ ) । की एक चोटी का नाम इमावुस कहा गया है ( मैकक्रिडि० एं० ई० पृ० १३१-३२) । इमावसी संस्कृत हिमवत् का रूप जान पड़ता है। इस नाम का प्रयोग प्रोकों ने पहले हिदूकुश और हिमालय के लिये किया, पर बाद में इसका प्रयोग बालोर पर्वत शृंखला के लिये हुआ । यह पर्वत श्रृंखला चीन और तुर्किस्तान से भारतवर्ष को अलग करती है । ग्रीक साहित्य में एमूदोस उपर्युक्त जातियों के प्रतिनिधि अपने देश की कला-कौशल की सामग्री युधिष्ठिर को भेंट करने को लाए । उसमें १० हजार काली गर्दनवाले खच्चर थे (कृष्णग्रीवान्महाकायान्), जो एक दिन में १०० कोस जा सकते थे। प्राचीन काल में खच्चर हेय दृष्टि से नहीं देखे जाते थे । भरत की बिदाई के समय उनके मामा ने खच्चर भेट किए थे ( रामा० अयोध्या०, बबई सहक०, ७०, २३) । भेटों की सूची में दूसरी वस्तु वाह्लीक तथा चीन के वस्त्र हैं ( सभा० ४७, २२ ) । ये वस्त्र ठीक नाप के, अच्छे रंगों वाले और मुलायम थे ( प्रमाणरागस्पर्शाढ्य )। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy