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________________ उपायनपव का एक अध्ययन __ कंक-(४७।२६) इनकी पहचान चीनी इतिहास के क-गु लोगों से की जा सकती है। घग्न लोगों की कैद से छुटकारा- पाकर चांग-कियन ता-युवान प्रदेश में पहुँचा। वहाँ से वह कांकु लोगों के पास पहुँचा (ज० अ० ओ० सा० १९२७, ९४)। कंकु कंकुयाना या सुग्ध ( बुखारा) को फर्गना के उत्तर-पश्चिम में चांग-कियन ने रखा है। उसके अनुसार इस देश के निवासी फिरंग जाति के थे जिनके रीति-रिवाज क क लोगों से मिलते हैं। लोमशाः ऋगिणो नरा:-(४७१२६) इस अवतरण में किन्हीं काल्पनिक लोगों की ओर इशारा नहीं है। यह भासित होता है कि ये लोग किसी शक कबीले के होंगे जो समूर पहनते रहे होंगे और जिनके शिरोवस्त्र में सींग लगा रहता था। शक, तुखार और क'को ने युधिष्ठिर को तेज घोड़े दिए। साहित्य में सैकड़ों ऐसे अवतरण हैं, जिनमें वक्षु के उत्तर अच्छे घोड़ों के होने का निर्देश है। चीन के बादशाह वूतो ने फर्गना से घोड़े लाने के लिये पहले फर्गना के लोगों को समझाने-बुझाने की चेष्टा की और बाद को उन घोड़ो को जबर्दस्ती लाने को एक फौज भी भेजी (जे० आर० ओ० एस० १९१७, १११-१३)। बनें ने भी अपनी बुखारा की यात्रा में तुर्कमान लोगों की तारीफ की है और इस अनुभूति का उल्लेख किया है कि तुक मान प्रदेश के घोड़ों की उत्पत्ति रुस्तम के घोड़े रख्श से हुई है ( वन, ट्रेवल्स इंदू बुखारा, जिल्द २, पृ० २७१-७७)। . पूर्व भारत के राजाओं द्वारा लाई दुई भेंट-(२८-४७, २८-३०)। पहले वर्ग में बहुमूल्य प्रासन, यान और शय्या हैं जिनमें मणिकांचन और हाथीदांत के काम किए हुए हैं। दूसरे वर्ग में पूर्व के बने नाराच और अर्धनाराच बाण, बहुत से और शस्त्र तथा हाथियों के झूल और बहुत से रत्नों का वर्णन है (४७३०)। इन भेटों से पता लगता है कि पूर्वी युक्तप्रांत, बिहार और उड़ीसा में हाथीदांत की कारीगरी बहुत बढ़ी-चढ़ी थी ( सभा०, अ०४८)। 1 उपायनपर्व (४८) के दूसरे, तीसरे श्लोकों में उन जातियों का वर्णन है जो शैलोदा नदी पर रहती थीं। शैलोदा नदी मेरु और मंदर के बीच में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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