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________________ १५४ नागरीप्रचारिणो पत्रिका पहुँचा (वार्मिंग्टन, दि कामर्स बिटवीन रोमन एंपायर एंड इंडिया पृ० ३५-३८) । इस बात की संभावना है कि वे भारतीय जिनका संबंध सिरिया के सिल्यूकसव' शी बादशाह से था, रोम के नाम से अभिज्ञ थे । रोम का प्रभाव उन दिनों सीरिया पर छा रहा था, इसी लिये लेखक रोम का नाम देने के लालच का 'संवरण न कर सका। यह केवल एक अनुमान है। एक दूसरी जगह दूसरा अवतरण वाटधान ब्राह्मणों के संबंध में सभापर्व' में आया है ( सभा, २९/७ ) । इस श्लोक में आया है कि नकुल ने मध्यमिका में वाटधान ब्राह्मणों को जीता। ऊपर से वाक्य बिलकुल सोधा जँचता है, पर इसका मतलब गंभीर है। यवनों द्वारा मध्यमिका का घेरा दूसरी श० ई० पू० की पुष्यमित्र शुंग के समय की खास घटना थी, जिसका उल्लेख पतंजलि ने महाभाष्य में भी किया है । 'L इस संबंध में हमें शुंगों के विषय में कुछ बातें जान लेनी चाहिएँ । शुंग अर्थ है वटवृक्ष । शायद उनका उद्भव ऐसी जाति से रहा हो जिसका टोटका वट का वृक्ष था । पुष्यमित्र के राज्यकाल की और घटनाओं से हमारा संबंध नहीं। हम उनके राज्यकाल की मुख्य घटना को लेते हैं, जो अपोलोडोटस तथा मेनेंद्र की स ंमिलित चढ़ाई थी । मध्यमिका की चढ़ाई का उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में है ( की लहॉन, इं० ऐं० भाग ७, पृ० २६६ ) । यवन मध्यमिका को घेरे हुए थे। टार्न के अनुसार मध्यमिका का यह घेरा अपोलोडोटस द्वारा डाला गया था (टार्न, वही, पृ० १५० ) । अब हमें नकुल की मध्यमिका की चढ़ाई की जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। सबसे पहली बात जो हमें मिलती है वह है कि मध्यमिका के राजा को वाटधान कहते थे और नकुल ने उसे जीत लिया । लगता है कि यवनों की मध्यमिका पर चढ़ाई तथा नकुल की मध्यमिकाविजय दोनों घटनाएँ मिला दी गई हैं। इसमें बहुत कम शक है कि शुंग और बाटधान ब्राह्मणों की जड़ एक ही थी, क्योंकि दोनों का टोटका बड़ का पेड़ ही था । भाप ( ४७/१९) में एक दूसरी तालिका दी गई है जिसमें चीन, डू, शक तथा ओड्रों का क्रम से उल्लेख है । हूणों के उल्लेख से अकसर लोग यह समझने लगते हैं कि महाभारत का यह अंश पाँचवीं शताब्दि का होगा जब हूणों ने गुप्त साम्राज्य का अंत कर दिया। पर महाभारत के हूए न तो संभवत: गुप्तकालीन हुए थे और न इनकी खोज हमें भारतवर्ष की आधुनिक सीमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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