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________________ घोगाजकुई के कोलार लेखों में वैदिक देवता १३९ वैदिक शब्दों में यह इस प्रकार हुआ-मित्र देवता, वरुण देवता, इंद्र देवता और नासत्य देवता। 'इलानि' शब्द देवतावाची 'इल' शब्द का बहुवचन है, जिससे म्लेच्छ ( सेमेटिक ) भाषा का इलाह या अल्लाह शब्द निकला है। मित्र और वरुण नामों के बाद 'अश्शिल' प्रत्यय संभवत: बहुवचन का द्योतक और नासत्य के बाद का अन्न प्रत्यय द्विवचन का वाचक है। मित्र और वरुण के पूर्व बहुवचन 'इलानि' का प्रयोग कुछ अस्पष्ट है। इन देवताओं के जो नाम इस लेख में आए हैं-जैसे मित्रश्शिल, अरुनश्शिल या उरुवनश्शिल, इंदरं तथा नश्तिअन्नवे यह बताते हैं कि मितानी राजवंश की यह शाखा अवश्य ही वैदिक आर्य शाखा के साथ निकट संबध रखती थी। आर्य जाति के भौमिक विस्तार की उपमा यदि एक धनुष से दी जाय तो विक्रम से डेढ़ सहस्र वर्ष पूर्व उसका एक छोर भारतवर्ष में और दूसरा बोगाजकुई में टिका हुआ मिलता है। इन मितानी राजाओं के नाम भी आर्य प्रभाव के सूचक हैं। मत्तिवज का पूर्वज दुशरत था। अमरना गाँव से मिले हुए पत्रों में उसने अपने पिता का नाम सुतर्न और पितामह का नाम अततम लिखा है। अमरना फलकों में मितानी राजा असुवर और खुर्ग के सुवरदत के नाम भी आए हैं। अततम संभवत: वैदिक ऋततम का रूप है। मितानी अत और ईरानी अश दोनों का संबध वैदिक ऋत से है। 'ऋत' वेद में विश्वव्यापी नियमों का द्योतक था और 'मितानी' अर्थ में भी इन्हीं भावों का समावेश पाया जाता है। ऋत प्राचीन वैदिक धर्म के अनुसार वरुण से विशेष सबधित था। खत्तिशश् (बोगाजकुई) से प्राप्त प्राचीन ग्रंथभंडार में चार और फलक मिले हैं, जो खत्ती भाषा में लिखे हुए शालिहोत्र विषय के एक ग्रंथ के भाग हैं। इस प्रथ में अश्वशास्त्र और रथों की दौड़ (वैदिक 'आजि') आदि का वर्णन था और मूल-प्रथ में और भी बहुत से पन्ने थे। इसके रचयिता मितानी के आचार्य किक्कुलि थे। खत्ती भाषा में होते हुए भी इसमें * देखिए अन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका, भाग ११, पृ० ६०४-लंदन की राजकीय एशिया-परिषद् की पत्रिका, १९०९, पृ० ७२३-२४, ११०८-१९ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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