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________________ बोगाजकुई के कीलाक्षर लेखों में वैदिक देवता [ लेखक-श्री मोतीचद, एम० ए०, पी-एच. डी. और श्री वासुदेवशरण ____ एम० ए०, पी-एच० डी०] ___ बोगाजकुई एशिया माइनर की अंगोग विलायत में एक छोटा सा गाँव है, जहाँ के प्राचीन खंडहर इस समय संसार में प्रसिद्ध हैं। इस स्थान का प्राचीन नाम खत्तशश था। खत्तो उस देश का और वहाँ बसनेवाली जाति का नाम था जिसे अंगरेजी भाषा में इस समय हित्ताइत ( Hittite) कहते हैं। बाइबिल में इसे ही हेथ ( Heth ) कहा गया है। खत्ती जाति की भाषा का नाम उनकी अपनी बोली में खत्तिली ( Khattili) था। यह बोली असंस्कृत वर्ग की थी। इसके साथ ही भारत-यूरोपीय वर्ग की भी एक बोली यहाँ प्रचलित थी, जिसका प्राचीन नाम नाशिली था और जो राजकीय भाषा थी। नाशिली भाषा का आधुनिक नाम हित्ताइत रख लिया गया है। चेक विद्वान् होजनी ने इस भाषा के लेखों को पढ़ा है, और उनकी सम्मति में प्राचीन हित्ताइत या नाशिलो भाषा ठोक भारत-यूरोपीय वर्ग की है। प्राचीन खत्तिशश स्थान का महत्व भारतीयों के लिये न केवल भाषाओं की दृष्टि से है, वरन् खत्तिशश से प्राप्त कुछ कीलाक्षर लिपि में लिखे हुए मिट्टी के फलको के कारण भी है जो १९०७ में जर्मन पुरातत्त्ववेत्ता विक्लर को प्राप्त हुए थे। ये अभिलेख खत्ती राजा शुप्पिलुलि उम तथा मितानी राजा मत्तिवज के संधिपत्र के रूप में हैं, जिनमें मितानी सम्राट् ने संधिपत्र की सत्यता की साक्षी के लिये आर्य देवताओं का उल्लेख किया है। संधिपत्र में देवों के नाम इस प्रकार हैं: इलानि मि-इत्-र अश्शिल इलानि उ-रु-व-न अश्शिएल ( पाठा० अ-रु-न-अश्शिल् , इलु इन-दर पाठा० इन-द-र) इलानि न-श-अत्-ति-अम्-न । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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