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________________ विक्रमादित्य उपर्युक्त खोजों से यह परिणाम निकाला गया है कि प्रथम शताब्दि ई० पू० में विक्रमादित्य नामक कोई शासक नहीं हुआ। तत्कालीन विक्रमादित्य कल्पनाप्रसूत है। संभवत: मालव संवत् का प्रारंभ ई० पू० प्रथम शताब्दि में हुआ था। पीछे से 'विक्रमादित्य' उपाधिधारी किसी राजा ने अपना विरुद इसके साथ जोड़ दिया। इस प्रकार संवत् के प्रवर्तक विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता बहुत से विद्वानों के मत में प्रसिद्ध हो जाती है। इस प्रक्रिया का फल यह हुआ कि कतिपय प्राच्यविद्याविशारदों ने प्रथम शताब्दि ई० पू० के लगभग इतिहास में प्रसिद्ध राजाओं को विक्रम संवत् का प्रवर्तक सिद्ध करने की चेष्टा प्रारंभ की। . आनुमानिक मत -(१) फगुसन ने एक विचित्र मत का प्रतिपादन किया है। उनका कथन है कि जिसको ५७ ई० पू० में प्रारंभ होनेवाला विक्रम सवत् कहते हैं वह वास्तव में ५४४ ई० प० में प्रचलित किया गया था। उज्जयिनी के राजा विक्रम,हर्षने ५४४ ई० में म्लेच्छों (शकों) को कोरूर के युद्ध में हराकर विजय के उपलक्ष में सवत् का प्रचार किया। इस संवत् को प्राचीन और पादरणीय बनाने के लिये इसका प्रारभकाल ६४१०० (अथवा १०४६०)=६०० वर्ष पोछे फेंक दिया गया। इस तरह ५६ ३० पू० में प्रचलित विक्रम संवत् से इसको, अभिन्न मान लिया गया है। किंतु क्यों ६०० वष ही पहले इसका प्रारभ ढकेल दिया गया, इसका समाधान फगुसन के पास नहीं है। इसके अतिरिक्त ५४४ ई० ५० के पूर्व के मालव संवत् ५२९ (मंदसोर प्रस्तर-अभिलख, फ्लीट : गुप्त उत्कीर्ण लेख सं० १८) तथा विक्रम सवत् ४३० ( कावी अभिलेख, इंडियन ऐंटिक्वेरी, १८७६, पृ० १५२) के प्रयोग मिल जान से फर्गुसन के मत का भवन हा धराशायी हो जाता है। (फर्गुसन के मत के लिये देखिए, इंडियन ऐंटिक्वरी वर्ष १८७६, पृ० १८२)। (२) डॉ० फ्लीट का मत था कि ५७ ई० पू० में प्रारभ हानेवाले विक्रम संवत् का प्रवर्तन कनिष्क के राज्यारोहण-काल से शुरू होता है ( जरनल आफ् दो रॉयल एशियाटिक सोसायटो, वर्ष १९०७, पू० १६९)। अपने मत के समर्थन में उनकी दलील यह है कि कनिष्क भारतीय इतिहास का एक प्रसिद्ध विजयी राजा था। उसने अंतराष्ट्रीय साम्राज्य की स्थापना की। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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