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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका . (६) द्वात्रिंशत्पुत्तलिका, राजावली श्रादि प्रथों तथा राजपूताने में प्रचलित (टॉड्स राजस्थान में संकलित ) अनुश्रुतियों में उज्जयिनीनाथ शकारि विक्रमादित्य की अनेक कथाएँ मिलती हैं। साधारण जनता की जिज्ञासा इन्ही अनुश्रुतियों से तृप्त हो जाती है और वह पर परा से परिचित लोक-प्रसिद्ध विक्रमादित्य के संबंध में अधिक गवेषणा करने की चेष्टा नहीं करती। किंतु आधुनिक ऐतिहासिकों के लिये केवल अनुश्रुति का प्रमाण पर्याप्त नहीं। वे देखना चाहते हैं कि अन्य साधनों द्वारा ज्ञात इतिहास से परंपरा और अनुश्रति की पुष्टि होती है या नहीं। विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता के संबंध में वे निम्नलिखित प्रश्नों का समाधान करना चाहते हैं: __ऐतिहासिक प्रश्न-(१) विक्रमादित्य ने जिस संवत् को प्रवर्तन किया था उसका प्रारभ कब से होता है ? (२) क्या प्रथम शताब्दि ई० पू० में कोई प्रसिद्ध राजवश अथवा महापुरुष मालव प्रांत में हुआ था या नहीं ? (३) क्या उस समय कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण घटना हुई थी जिसके उपलक्ष में संवत का प्रवर्तन हो सकता था ? इन प्रश्नों को लेकर अब तक प्राय: जो ऐतिहासिक अनुसंधान होते रहे हैं उनका सारांश संक्षेप में इस प्रकार दिया जाता है : (१) यद्यपि ज्योतिष-गणना के अनुसार विक्रम संवत् का प्रारंभ ५७ ई० पू० में होता है किंतु विक्रम की प्रथम कई शताब्दियों तक साहित्य तथा उत्कीर्ण लेखों में इस संवत् का कहीं प्रयोग नहीं पाया जाता । मालव प्रांत में प्रथम स्थानीय संवत् 'मालवगण-स्थिति-काल' था जिसका पता मंदसोर प्रस्तरलेख से लगा है—'मालवानां गणस्थित्या याते शतचतुष्टये' ( फ्लीट, गुप्त-उत्कीर्ण लेख सं०१८)। यह लेख पाँचवीं शताब्दि ई० प० का है। (२) प्रथम शताब्दि ई० पू० में किसी प्रसिद्ध राजवंश अथवा महापुरुष का मालव प्रांत में पता नहीं। (३) इस काल में कोई ऐसी क्रांतिकारी घटना मालव प्रांत में नहीं हुई जिसके उपलक्ष में संवत् का प्रवर्तन हो सकता था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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