________________
वैद्य-सार
कपिकच्छू, घीकुमारी केवड़े, केला के फल, मोखा (पाढल), बहेरे, असगंध, कुम्हड़ा, बेल, बिजौरा नींबू तथा चिरौंजी, इन सब के स्वरस से पच्चीस पच्चीस भावना देवे एवं सेमर के स्वरस की १०० एक सौ भावना दे। इस प्रकार भावना दे सुखाकर रख लिया जाय तो यह मदन काम नामका रस तैयार हो जाता है। इसको एक रत्ती, दो रत्ती के प्रमाण से विशेष अनुपान द्वारा सेवन किया जाय तो सब धातुओं की वृद्धि होती है। तथा शरीर की कांति को बढ़ानेवाला यह पूज्यपाद स्वामी का कहा हुभा है।
११५-अजीर्णादौ प्रभावती बटी हरिद्रा निंबपत्राणि पिप्पली मरिचानि च । भद्रमुस्ता विडंगानि सप्तमं विश्वभेषजम् ॥१॥ चित्रकं गंधक सूत विर्ष पाणहरीतकी। एतानि समभागानि चाजमूत्रेण पेषयेत् ॥२॥ चणप्रमाणवटिकां छायाशुष्कं तु कारयेत् । उष्णोदकेन पीतेन अजीर्ण नाशयेगृढम् ॥३॥ द्वयं विषूचिका हंति तथैवोष्णोन वारिण। पंच लूतानि विस्फोटकांजयत्यत्न निश्चितम् ॥४॥ वणादावन्यरोगे च पानलेपं च कारयेत् । पनिता स्तनदुग्धेन चांजने पटलापहा ॥५॥ राज्यधं तिमिरं कांचं अन्यदाकवारिण। गोमूत्रेण सहैषा हि तृतीयादिज्वरं जयेत् ॥६॥ गुडोदकेन संपीतो वातदोषं प्रशाम्यति । गुडोदकेन लेपेन क्षतजातं प्रशाम्यति ॥७॥ लेपनादेव नश्यति . शिरःशूलशिरोगदा। स्त्रीस्तन्येनांजनं कार्य नेननापविमुक्तये ॥६॥ मधुना पिच्छिल हंति ताम्रपत्रेण घर्षतः। . पुष्पं च पटलं हंति कदलीकंदधारिणा ॥६॥ नेत्रकाचं जयत्याशु कासमदरसान्विता । छागमूनान्विता लेपैः नेत्रभारं विनाशयेत् ॥१०॥ अर्कतीरान्वितो लेपो लूतादोषविनाशनः । गुटिकासेधनेनैव मूत्रकृष्ट विनाशयेत् ॥११॥..
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com