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________________ . - वैध-सार श्वेतवानरिवीजञ्च कौमारीकेतकीपयः। रंभापक्वफलं चैव मोक्षमतश्च पिप्पली ॥१४॥ अश्वगंधा च कूष्मांड विल्वकोवीजपूरकः। प्रियालशुद्धवीजञ्च तीरवृत्तस्य पल्लवाः ॥१५॥ एषां निर्यासमुद्धृत्य प्रत्येकं पंचविंशतिम् । भावनाः कारयेद्यस्तु शाल्मलीशतभावनाः ॥१६॥ भावितः शोषितः सिद्धः मदनकाम इतिस्मृतः। एक गुंजो द्विगुंजो वा रसोऽयं सेवितः सदा ॥१७॥ अनुपानविशेषेण सर्वथा तु विवर्धनः। बपुकान्तिकरः श्रेष्ठः पूज्यपादेन भाषितः॥१८॥ टीका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक इन दोनों की कजली बनावे फिर तकिया हरताल की भस्म, शुद्ध मैनशिल, शुद्ध सोनामक्खी, चांदी की भस्म, पीतल की भस्म, बंगभस्म, शीश की भस्म, सोने की भस्म, शुद्ध सिंगरफ, तामे की भस्म तीनों लौह (कांत, तीक्ष्ण, मुंड) की भस्म, हीरा की भस्म, प्रवाल भस्म, मोती की भस्म, मरकतमणि (पन्ना) की भस्म, इन सब की निरुत्थ भस्म, अलग करके तथा इनको एक से दूसरा क्रमशः बढ़ा कर लेवे (जैसे पारा एक भाग, गंधक २ भाग इत्यादि) इस प्रकार सबको एकत्रित कर खरल में मौवा के दूध से घोंटे पश्चात् घीकुमारी के स्वरस से तीन तीन दिन तक लगातार घोंटे। बाद सुखाकर बनमूषा को बना उसमें उसको रखे और मंद मंद अग्नि से पकावे, जब स्वांगा शीतल हो जाय तब निकाल कर मुसली के स्वरस में अथवा काढ़े में घोंटकर छाया में सुखावे और कुक्कुटपुट में पच्चीसबार फूके । प्रत्येक बार मुसली के स्वरस की भावना देता जाय, फिर खरल में डालकर सेमल की जड़ के स्वरस से भावना तथा शतावरी मूसली, ईख, तालमखाने, मुद्रपर्णी, गोखरू और पुनर्नवा इन आठों के स्वरस की चार चार दिन तक भावना देवे और सुखाता जावे, अन्त में बनमूषा में मध्यम पुट देवे। इस प्रकार यह एक पुट हुई। इसी तरह सात पुट देवे। स्वांग शीतल होने पर निकाल ले तथा अलसी के फूल, काले धतूरे, भांग, नागकेशर, तथा चातुर्जात (इलायची, दालचीनी, तेजपत्र, नागकेशर) के स्वरस की एक एक भावना दे सुखाकर कांच की शीशी में कपड़मिट्टी करके उसको भरे एवं बालुकायंत्र में २४ प्रहर तक पाक करे | यह पाक क्रम से मृदु एवं मध्यम आंच से पकावे । जब पाक हो जाय और जब ठंडा हो जाय तब निकालकर पत्थर के खरल में डालकर ईख, अनार खजूर, मूसली, धतूरे, गोखरू और चातुर्जात के रस की, गाय के दूध की, शक्कर की, शहद की, जीरे, नीलोफर, बकची, नारियल, अपामार्ग, भांग, गुरबेल, त्रिफला, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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