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________________ वैद्य-सार ७.३ पीड़ित मनुष्य के लिये सफेद कोमल (विष्णुकान्ता) का अनुपान देवे तथा पुराना कुष्ठरोग हो एवं सातो धातुओं में प्रविष्ट हो गया हो तो दूध और शक्कर सात दिन तक बराबर अनुपान में पिलावे । यह तालकेश्वर रस अनेक प्रकार के कुष्ठरोग को दूर करनेवाल पूज्यपाद स्वामी ने कहा है । १११ - अतीसारे महासेतुरसः जातीफललवंगैलाकर्कोटजटिलांबुदाः । प्रन्थिका दीपकद्वन्द्वालु विल्वाम्रदाडिमाः ॥१॥ सैंधवातिषा मोचो (?) वनयक्षात्क्षिवीजकाः (१) । धातकीकुसुमं व्योषजयाचित्रकजांबवं ॥२॥ लौहभस्माभ्रसिन्दूर विषपारदहिंगुलं । पतानि समभागानि सर्वाणि खलु मेलयेत् ॥३॥ गुंजामाaar कुर्यात् मर्द्य श्वोन्मत्तवारिणा । अनुपानविशेषेण सर्वातीसारनाशनः ॥४॥ महासेतुरिति ख्यातः महावेगस्य रोधकः । सर्वश्रेष्ठ प्रयोगोऽयं पूज्यपादेन भाषितः ॥५॥ टीका - जायफल, लवंग, छोटी इलायची, बॉझककोड़ा, जटामांसी, नागरमोथा, पीपरामूल, अजमोदा, अजवायन, श्योनाक, बेल की गिरी, आम की छाल, अनार का बकला, सेंधा नमक, अतीस, मोचरस, बहेरा, तालमखाने की लाई, धवई के फूल, सोंठ, मीर्च, पीपल, अरनी, चित्रक, जामुन की छाल, लौह भस्म, अभ्रक की भस्म, रससिन्दूर, शुद्ध विषनाग, शुद्ध पारा, और शुद्ध सिंगरफ इन सब को समान भाग ले और सबको एकत्रित करके धतूरे के रस से घोंट कर गोली बना लेवे। यह सब प्रकार के अतीसारों को नाश करनेवाला है। अतीसार के बढ़े हुए वेग को रोकनेवाला यह महासेतु रस पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ उत्तम प्रयोग है। ११२ -- प्रमेहे मेहारिरसः सूतं गंधक कांत बंगगगनं मडूरकं शोसकं सौवीराद्विजगैरिकंशशिशिला बब्बूलबीजं दलं | · कार्पासास्थिजलारिसिंधुलवणं चिंचासुवीजत्वचं । सारं बिल्वकपित्थनिंबकुटजमत्स्यात्रिमेदायुगं ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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