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वैद्य-सार
गुंजायुग्मकिरीटनक्तजतुका भृगं वराभिः समम्। चूर्णपाणितलं सतक्रमथवा मध्वन्वितं तलिहेत् । पिष्याकोदनभोजनं प्रतिदिने तैलेन तक्रण वा
विशतिमेहजयी रसोनिगदितः श्रीपूज्यपादेन वे ॥२॥ टीका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, कांत लौह भस्म, बंगभस्म, अभ्रक भस्म, मंडूर भस्म, शीशा भस्म, सफेद सुरमा, गेरू, शिलाजीत, कपूर, शिला, (मनशल), बबूल का बीज़ तथा पत्ती, कपास के बीज की गिरी, चित्रक, सेंधा नमक, इमली का बीज और इमली की छाल, बेल का सार, कवीट का सार, नीम का सार, कुरैया का सार, मछली, मेदा, महामेदा दोनों प्रकार के घुघुचियों का फूल, हल्दी, लाख, दालचीनी, त्रिफला ये सब बराबर लेकर योग्यमात्रा से छाँछ के साथ, मधु के साथ तथा पथ्य में रबड़ी मलाई, चावल खावे अथवा तैल से तथा छाँछ से भोजन करे तो यह रस बीस प्रकार के प्रमेह को नाश करता है।
११३-प्रमेहे मेहबद्धरसः भस्मसूतं भृतं कांतं मुंडभस्म शिलाजतु । शुद्ध ताप्यं शिलान्योषं त्रिफला कोलवीजकम् ॥१॥ कपित्थरजनीचूर्ण समं भाव्यं च भृङ्गिणा । विषमेनहिभागेन सघृतं समधुलिहेत् ॥२॥ निष्कमात्रं हरेन्मेहान् मेहबद्धरसो महान् । महानिंबस्य बीजानि शिलायां पेषितानि च ॥३॥ . पलतंडुलतोयेन . घृतनिष्कद्वयेन च।
एकीकृत्य पिबेच्चानु हंति मेहं चिरन्तनम् ॥४॥ टीका-पारे की भस्म, कांतलौह भस्म, मंडूरभस्म, शिलाजीत, शुद्ध सोनामक्खी, शुद्ध शिला, त्रिकटु, त्रिफला, बेर की गुठली, कवीट (कैथा), हल्दी ये सब बराबर लेकर भंगरा के रस से गोली बनावे और बलाबल के अनुसार घी तथा शहद विषमभाग से मिला कर उसके साथ देवे तो सब प्रकार के प्रमेहों को दूर करे। इसका बकायन के बीजों को ४ तोला चांवल के पानी में पीसकर तथा उसी में ६ मासे घी मिलाकर ऊपर से पिलावे तो प्रमेह की शांति होवे ।
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