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________________ वैद्य-सार पकावे जब स्वांग शीतल हो जाय तब इसको गोमूत्र से घोंट कर रख लेवे। इस रस को दो दो रत्ती अनुपान-विशेष से सेवन करे तथा ऊपर से महामंजिष्ठादि काढ़ा पीवे। इस रस के सेवन करने के पहले वमन, विरेचन, अवश्य करना चाहिये। यह रस अठारह प्रकार के कुष्ठों को नाश करनेवाला है। यह पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ उत्तम रस है। ११०-कुष्ठे तालकेश्वररसः तालस्य सत्वमादाय तत्समा तु मनाशिला । द्विभागं सूतकं चापि गंधकं च समं तमं ॥१॥ गोकर्णिकारसैधापि धात्रीमोचोद्भवैः रसैः। मर्दयित्वा तथा सर्व खल्वे तत् पंचवारकं ॥२॥ रसैः पुनर्नवायाश्च पिष्टवा पिष्ट्वा पुनः पुनः। तस्य पिण्ड प्रदातव्यो मूषिकायां तथापरं ॥३॥ कृत्वांध्रमूषिकां चापि वेष्टितां वसनादिभिः। ततः पातालयंत्रेण पाच्यश्च करिणीपुटे ॥४॥ ततस्तत्सममाकृष्य गुंजकां वा द्विगुंजकां । भक्षयेत् प्रातरुत्थाय पर्णखंडेन केनचित् ॥५॥ गोऽजापयश्च धारोषामनुपानं कुष्ठरोगिणे । श्वेतापराजिता देया कामलाव्याधिपीडिते ॥६॥ पयसा शर्करा देवा जीर्णकुष्ठे च पुष्कले । ' सप्तधातुगते कुष्ठे सप्ताहं च पिबेदनु ॥७॥ तालकेश्वरनामाऽयं पूज्यपादेन भाषितः । नानाकुष्ठमहान्याधिवने चरति सिंहषत् ॥८॥ टीका तपकिया हरताल का सत्त्व, शुद्ध मेनशिल, एक एक भाग, शुद्ध पारा २ भाग, शुद्ध गंधक २ भाग इन सब को एकत्रित कर खरल 'में घोंटकर गोकणिका (मूर्वा), भावले और केले के रस से पाँच पाँच बार अलग अलग घोंट कर तथा पुनर्नवा के रस से भी पांच बार घोंट कर उसका पिंड बना कर अन्धमूषा में बंद करे एवं ऊपर से पल से वेषित कर और पाताल में गजपुट की आँच देवे । जब स्वांग शीतल हो जाय तव निकालकर एक रत्ती अथवा २ रत्ती प्रातःकाल पान के रस के साथ सेवन करे और ऊपर से गाव या बकरी का धारोष्ण दूध पिये। यह अनुपान कुष्ठ रोग का है। कामला से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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