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________________ वैद्य-सार तेजपत्ता, इलायची, जायपत्री, कौड़ी की भस्म ये सब बरावर बराबर लेकर तीन दिन तक : अलग अलग शतावरी तथा मूसली के रस से सात दिन तक घोटे और उसकी एक एक रत्ती की गाली बनावे और दो दो रत्ती की मात्रा से शहद के साथ सेवन करावे तो यह वीर्य को स्तम्भन करनेवाला है और ऊपर से शक्कर, दूध एवं घी का सेवन करे। यह कामांकुशरस कामी जनों को आनन्द देनेवाला, हजारों स्त्रियों को तृप्तकरनेवाला उत्तम रसायन है। शरीर की कांति तथा बल को देनेवाला है। यह बाजीकरण पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ उत्तम प्रयोग है। टिप्पणी-यह रस भी बहुत बढ़िया मालूम होता है लेकिन बहुत कीमती है। हरएक नहीं बना सकता है। इसमें जो व्योमसिंदूर शब्द आया है सो मलसिंदूर, ताम्र सिंदूर, ताल सिंदूर तो पाये हैं लेकिन व्योमसिंदर की जगह एक अभ्रसिंदूर रसयोगसागर में लिखा है, जो एक प्रकार की अभ्रक की भस्म ही है इसमें पारद नहीं है। बाजीकरण औषधियों के ३६ पुट लिखे हैं। कांतसिंदूर नहीं मिला, यह भी एक प्रकार का सिंदूर मालूम होता है जो लौहभस्म डालकर बनाया जाता है । १०६-कुष्ठे तांडवाख्यरसः तालं गंधं माक्षिकं च कुष्ठं पारदभस्म च | श्वेतापराजिताम्भोभिः मर्दयेहिवसत्रयम् ॥१॥ धात्रीफलरसेनापि सप्तधा भावयेदमुं। अन्धमूषागतं रुद्ध वा चोर्ध्व मृण्मयवेष्टितं ॥२॥ कुक्कुटाख्ये पुटे दग्ध्वाथगोमूत्रेण मर्दयेत् । तांडवाख्यो रसो ह्यषः गुंजाद्वयनिषेवितः ॥३॥ कुष्ठानां वमनं पूर्व विरेचनमतः परं । ततो महाकषायश्च मंजिष्ठादिः प्रशस्यते ॥४॥ अष्टादशविधानां हि कुष्ठानां च विनाशकः। तांडवाख्यरसश्चासौ पूज्यपादेन भाषितः ॥५॥ टीका-तवकिया हरताल की भस्म, शुद्ध गंधक सोनामक्खी की भस्म, मीठा कूट, पारे की भस्म (रससिन्दूर) इन सब को खरल में एकत्रित करके सफेद कोयल के स्वरस से तीन दिन तक बराबर मर्दन करे, फिर आँवले के फल के रस से सातबार भावना देवे बाद मुखाकर अंधभूषा में बंद करदे ऊपर से सात कपड़मिट्टी करके सुखा लेवे और फिर कुक्कुटपुट में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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