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________________ ७० वैद्य-सार हरताल भस्म, शुद्ध गंधक, खपरिया भस्म, शुद्ध विषनाग, तूतिया की भस्म, तामे की भस्म, शिलाजीत, सज्जीखार, जवाखार, सुहागा, समुद्र नमक सेंधा नमक, काला नमक, सांभर नमक, विड नमक, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेरा, आंवला, बटकी जटा, शुद्ध जमालगोटा, निशोथ, जमालगोटे की जड़, वायविडंग, चाव, चित्रक, कौड़ी की भस्म, अजमोदा, अजवायन, हली, दारुहल्ली, कूट, जायफल, इलायची, भारंगी, धवई के फूल, गूगल, शुद्ध नागरमोथा, पुनर्नवा, (साठी) हींग भुनी, पोपरामूल, स्याहजीरा और सफेद जीरा इन सबको एकत्रित कर कूट कपड़छन कर के अदरख के रस, बिजौरा नींबू के रस तथा भंगरा के रस के साथ घोंट कर चना के बराबर गोली बनावे। यह गोली विशेष अनुपान से संपूर्ण वातरोगों को तथा सर्व प्रकार के ज्वरों को गुल्म, पांडु, क्षय, अजीर्ण, कामला, शल इन सबको नाश करनेवाला है-यह पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ उत्तम योग है। १०८-वाजीकरणे कामांकुशरसः शुद्धसूतकसिन्दूरव्योमसिन्दूरगंधकं । कांतसिन्दूरमुन्मत्तवीजकं वत्सनाभकः ॥॥ घनभस्म स्वर्णभस्म अहिफेनं वार्धिशोकजं । निसुगंधं च मिलितं जोतीपत्नवराटकं ॥२॥ तुल्याशं निक्षिपेत्खल्वे मर्दयेत् वासरत्रयम् । शतावरीरसैर्वाथ मुशलीस्वरसेन वा ॥३॥ सप्ताहं भावयेद्यनात् कुक्कुटांडरसेन च। घटकान्कारयेत्तस्य गुंजामाप्रमाणकान् ॥४॥ देयं गुंजाद्वयं नित्यं भक्षयेत्तन्मधुप्लुतम् । महानंदकरः सम्यक्वीर्यस्तंभ करोत्यसौ ॥५॥ शर्करांषा दुग्धघृतमनुपानं पिबेत्सदा । कामांकुशरसोह्यषः कामिनां तृप्तिकारकः ॥६॥ कामिनीनां सहस्राणां तर्पयेदिवसांतरे। . रसायनमिदं श्रेष्ठं वपुःकांतिबलप्रद ॥॥ घाजीकरणप्रयोगोऽयं मदनानंदनंदनः। कामांकुशरसो नाम पूज्यपादेन भाषितः ॥८॥ टीका-शुद्ध पारा, रससिन्दूर, व्योमसिन्दूर, शुद्ध गंधक, लौह सिन्दूर, शुद्ध धतूरा के बीज, शुद्ध विषनाग, हीरे की भस्म, सोने की भस्म, शुद्ध अफीम, समुद्रशोष, दालचीनी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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