________________
में नहीं देखा गया है; क्योंकि प्रायः उपदंश के औषध केवल व्रणों को ही ठीक करते हैं, किन्तु कंदर्परस शारीरिक शुद्धि के साथ-साथ धातुबद्धक और पौष्टिक भी है। इसके प्रयोग से निकृष्ट रक्त वाले और अशुद्ध वीर्य वाले व्यक्ति भी कामदेव-सदृश सुन्दर शरीर को प्राप्त कर तेजस्वी सन्तान पैदा कर सकते हैं।
विबन्ध के लिए-विरेचकतिक्तकोषातकी योग–यह योग कड़वी तोरइ से बनाया गया है। इसके द्वारा बनाये गये तैल को सिर्फ पैर के तलवों पर लगाने और नामि पर मलने से अन्तरङ्ग आमदोष का वहिःनिःसरण होने लगता है। कैसा चमत्कार है कि औषध सेवन किये विना भी, स्पर्शमात्र से, भीतर की व्याधियाँ शान्त हो जाती हैं। ___ इसी विषय का जयपाल योग है। भैषज्यरत्नावली, रसेन्द्रसार-संग्रह आदि ग्रन्थों में इच्छाभेदीरस नाराचरस आदि औषध विबन्ध अवस्था में रेचन कराने के लिये दिये जाते हैं, क्योंकि वहाँ पर जयपाल को विरेचक ही माना गया है किन्तु इस ग्रन्थ में ठंढे पानी के अनुपान से विरेचन गुण जतलाते हुए गरम पानी के साथ देने से वमन गुण भी प्रकट किया गया है। इस प्रकार एक ही योग से दो विरुद्ध कार्य किये जा सकते हैं। ___उदयादित्यवर्ण रस-यह तो वास्तविक में यथा नाम तथा गुण वाला है। इसको मोतो मूंगा,सोना और तांबा आदि रत्नों और भस्मों के सम्बन्ध से अद्भुत चमत्कारपूर्ण कर दिया गया है । इसका प्रयोग तपेदिक, श्वास, कुष्ठ, सन्निपात आदि कष्टसाध्य रोगों के लिये सदुपयोगी है। जो व्यक्ति जीर्णज्वर, राजयक्ष्मा आदि बीमारियों से हताश हो चुके हैं, वे लोग इस रस का अवश्य सेवन करें। ऐसी बीमारियों को दूर करने के लिये यह रामबाण निर्णीत हो चुका है। ___ लोकचिन्तामणि रस-तूतिया, वत्सनाभ विष और लागली आदि विषैले पदार्थों से बनाया गया यह रस कठिन से कठिन व्रण और विषैली गाँठों को बैठाने के साथ-साथ भयानक ज्वरों को भी शान्त कर देता है। प्लग-जैसी महामारी के लिए इस औषध का प्रयोग बहुत उत्तम है। वर्तमान समय में ऐसा अच्छा योग किसी भी प्रन्थ में देखने में नहीं आया है, जो कि खाने और लगाने-इन दोनों प्रयोगों के द्वारा प्लेग, कण्ठमाला, कारबकल श्रादि दुःसाध्य बीमारियों को ठीक कर सके। आशा है कि हमारे चिकित्सकगण इस उत्तम योग को प्रयोग में लाकर इसका प्रचार करेंगे।
वातरोग में रसादि योग-कुछ समय पहले सुना करते थे कि अमुक महात्मा ने चुटकी से जरा सी खाक या सरसों-सी गोलो दे दी थी, उसने बड़ा लाम किया इत्यादि । आज वैसा ही आश्चर्यजनक रस आपके सामने प्रस्तुत है। इस योग की सषप-सदृश वटी चौरासी प्रकार के वातरोग, कफरोग, प्रमेह, उदररोग और विषूचिका आदि उग्र व्याधियों पर अव्यर्थ लाम प्रकट करती है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com