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तथा 'भाषितं पूज्यपादैः' इत्यादि अनेक योगों के अन्त में मिलता है, जिससे सिद्ध होता है कि जैन आचार्यों ने इस समस्या को मले प्रकार हल किया है।
लेख बहुत बढ़ गया है। अन्त में सारांश यह है कि मनुष्यमात्र को रोगमुक्ति के लिए चिकित्सा की आवश्यकता है और उसकी अच्छी विधि के लिये आयुर्वेद ज्ञान की आवश्यकता है। जिन अचार्यों ने ऐसे प्रन्थ संग्रह किये हैं, उन्होंने संसार का बड़ा उपकार किया है, खासकर रस-प्रन्थ रचनेवालों ने तो और भी कमाल का काम किया है। - ऐसे ही एक आचार्य का बनाया हुआ 'वैद्यसार' नामक ग्रन्थ हमारे सामने है, जो जैनसमाज के प्रसिद्ध दानवीर, परोपकारी बाबू निर्मल कुमारजी तथा बाबू चक्र श्वर कुमारजी बी० एस-सी, एल-एल-बी०, एम० एल० ए० द्वारा संचालित 'जैन-सिद्धान्त-भवन' आरा से प्रकाशित हुआ है। इसकी खोज और प्राप्ति के लिए 'भवन' के अध्यक्ष श्रीमान् विद्याभूषण पं० के० भुजबलीजी शास्त्री ने बड़ा परिश्रम किया है। आपकी बहुत दिनों से इच्छा थी कि कोई जैन वैद्यक-ग्रन्थ प्रकाश में आवे। इसके लिये आप सदैव से हम लोगों को प्रेरणा किया करते थे।
इसकी टीका श्रीमान् पण्डित सत्यंधरजी जैन 'वत्सल' आयुर्वेदाचार्य ने, जो कानपुर के आयुर्वेद-विद्यालय में ही कई वर्ष रह कर वैद्यक की उच्चकोटि की शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, आज कल छपारा, जिला छिंदवाड़ा में रहते हैं, बड़े परिश्रम से की है। इसके लिए उनको अनेक धन्यवाद है। ___ यद्यपि प्रन्थ छोटा है, किन्तु बड़ा उपयोगी है। इसके संग्रहकर्ता का नाम तथा स्थान
और समय का पता न लगा सका। कई बार मेरे और पं० के० भुजबलीजी शास्त्री के बीच पत्र-व्यवहार भी हुआ, एक दो जगह और भी तलाश की गई, लेकिन शोक है कि हम लोग इस कार्य में सफल न हो सके। ग्रन्थ छपे भी लगभग दो वर्ष हो गये। कुछ इस कारण से कुछ अन्य विघ्न-बाधाओं के आ जाने के कारण इसकी भूमिका भी नहीं लिखी जा सकी थी। __ अब कुछ इस ग्रन्थ में आये हुए योगों पर पाठकों का ध्यान आकर्षित करके इसको समाप्त करता हूँ और आशा करता हूँ कि जैनसमाज में तथा वैद्यक-संसार में यदि इसका कुछ प्रचार हुआ और जनता को लाभ पहुँचा तो आगे वैद्यक ग्रन्थों के प्रकाशन में सहायता पहुँचेगी।
इस ग्रन्थ की रचना कविता के ख्याल से. तो बहुत ऊँची नहीं मालूम होती है, लेकिन लेखक विद्वान् और विशेष अनुभवी मालूम होता है। प्रायः प्रत्येक रोग पर ऐसी योग्यता
और अनुभव के नुस्खे लिखे हैं, जो बहुत लाभकारी हैं। बहुत-से योग तो ऐसे मालूम होते हैं कि वैद्यकशास्त्र-भर का मंथन करके लिखे गये हैं। कुछ दृष्टान्त देखियेः ।
कन्दपरस-यह रस अपनी श्रेणी का नवीन प्रकार का है। ऐसा रस किसी भी ग्रन्थ
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