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________________ वैद्य-सार गुंजाद्वयं च वटिका दातव्या चाद्रकैः रसैः । बातजन्यं च गुल्मं च शूलं च जठरानलम् ॥३॥ पूज्यपादेन कथितश्चोत्तमो भैरवीरसः । टीका - शुद्ध पारा, स्याहजीरा, वायविडंग, शुद्ध गंधक, काला नमक, सोंठ, मिर्च, पीपल, त्रिफला, अतीस, सेंधा नमक, शुद्ध विषनाग इन सबको समान भाग लेकर पहिले पारे और गंधक की कज्जली बनावे, पश्चात् सब औषधियां कूट कपड़छन करके हेमक्षीरी (सत्यानाशी) के स्वरस में घोंट कर एक-एक रत्ती की गोली बांधे । दो-दो गोली सुबह शाम अदरख के रस के साथ देवे तो बातजन्य गुल्मरोग एवं शूल रोग के विनाश के साथ जठराग्नि दीप्त हो जाती है । यह भैरवीरस पूज्यपाद स्वामी ने कहा है । १५ - शीतज्वरादौ स्वच्छन्द भैरवीरसः समभागं च संग्राह्य पारदामृतगंधकम् । जातीफलं च भागाधं दत्त्वा कुर्याश्च कज्जलीम ॥१॥ सर्वार्धमागधी चूर्णं खल्वयिश्वा तु दापयेत् । गुंजाद्वयं त्रयं चापि नागवल्लीदलेन वा ॥२॥ स्रसेनापि यत्नात् पूर्व निषेवितम् । शीतज्वरे सन्निपाते विषचीविषमज्वरे ॥३॥ जीर्णज्वरे च मन्दाग्नौ शिरोरोगे च दारुणे । प्रयुज्य भिषजः सर्वे रसं स्वच्छन्दभैरवं ॥४॥ मुहूर्तात्सेवने पश्चात् ततः कुर्यात् क्रियामिमां । तवक्षीरं सितां दद्यात् ततः शीतेन वारिणा ॥५॥ पथ्यं दध्योदनं कुर्यात् आर्द्राहारं तु कालजित् । यथा सूर्योदयेण स्यात्तमसः नाशनं परम् ॥६॥ स्वच्छन्दभैरवेण स्यात्तथा सर्वामयस्य तु । स्वच्छन्द भैरवीनामा पूज्यपादेन भाषितः ॥७॥ ६ ३ टीका - शुद्ध पारा, शुद्ध विषनाग, शुद्ध गंधक एक-एक भाग लेवे तथा जायफल आधा. भाग लेवे। इन सब की कज्जली करके सब से आधी पीपल लेकर सबको सूखा एवं खरल कर २ रप्ती या तीन रती पान के रस के साथ अथवा अदरख के रस के साथ यक्षपूर्वक देवे तो इससे सन्निपात, विषूचिका, विषमज्वर, जीर्णज्वर, मन्दाग्नि तथा कठिन से कठिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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