SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वैद्य-सार रोगान् कुष्टाग्निसर्वाणि गुल्ममेहादराणि च । हन्यात् शुलानि सर्वाणि विषूची ग्रहणीमपि ॥ ४॥ दीपनं कुरुते चाग्निं पूज्यपादेन भाषितः।। दध्यन्नं दापयेत् पथ्यं शैत्रमुपचारयेत् सदा ॥५॥ टीका -शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गंधक २ भाग, शुद्ध विषनाग ३ भाग, पीपल ४ भाग, काली मिर्च ५ भाग, इन सबको मिला कर कूट कपड़छन कर खरल में नीबू के रस में घोंट तथा सफेद सरसो के बराबर गोली बांधे तथा रोगी के बलानुसार योग्य अनुपान से इसका सेवन करावे तो ८४ प्रकार के बातरोग, ५० प्रकार के कफरोग, सव प्रकार के कोढ़, सब प्रकार के गुल्म प्रमेह उदर रोग, शूल, विचिका, एवं संग्रहणो वगैः रह को नाश करता है। अग्नि को भी संदीपन करता है। इसके ऊपर दही-भात का पथ्य है। और इसके सेग्न पर शीतल उपचार करना चाहिये ऐसा श्रीपूज्यपाद स्वामी ने कहा है। ८६--शूले शूलकुठाररसः टंकणं पारदं गंधं त्रिफला-व्योषतालकं । विष ताम्र च जयपालं भृगस्य रसमर्दितम् ॥ १॥ गुंजमानण गुटिकां नागवल्लीरसेन तु। आकस्य रसेनेव यथायोग्य प्रयोजयेत् ॥२॥ शूलान् शूलकुठारोऽयं विष्णुचक्रमिवासुरान् । विशेषेणानुपानेन पूज्यपादेन भाषितः॥३॥ टीक-चौकिया सुहागे का फूला, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, बड़ी हर्र का छिलका, बहेरे का बकला, आंवला तकिया हरताल की भस्म, शुद्ध विषनाग, तामे की भस्म और शुद्ध जमालगोटा इन सबको बराबर बराबर लेकर भंगरा के रस में दिन भर मर्दन करके एक एक रत्ती प्रमाण गोली बनावे तथा इसको पान के रस के साथ अथवा अदरख के रस के साथ योग्य मात्रा से देवे। विशेष अवस्था में विशेष अनुपान से देने से सम्पूर्ण प्रकार के शूलों को नाश करे। जिस प्रकार कृष्णचन्द्र जी ने सुदर्शन चक्र से असुरों का नाश किया था वेसा ही यह रस उल्लिखित रोगों का नाश करता है। ऐसा पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy