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वैद्य सार
छन कर जम्बीरो नीबू के रस में मर्दन कर के काली मिर्च के बराबर गोली बनावे। यह गोली अनुपान विशेष से अग्निमांद्य की शान्ति के लिये लाभदायक है। यह अस्सी प्रकार के वायु के रोग सर्व प्रकार के गुल्म रोग तथाग्रहणी रोग इन सब रोगों के नाश करने के लिये हितकारी है। यह कालाग्नि रुद्ररस श्री पूज्यपाद स्वामी जी ने कहा है। ___ भावार्थ-आचार्य जी ने इस रसका अनुपान तथा माना नहीं बतलाई है। इस लिये वैद्य लोग रोगी का तथा रोग का बलाबल विचार कर मात्रा तथा अनुपान की कल्पना स्वयं करें।
८४ -अजीर्णो अजीर्णकंटकरमः शुद्ध' सूतं विषं गंधं समं सई विचूर्णयेत् । मरिचं सर्वसाम्यांश कंटकारीफलद्रवैः॥१॥ मर्दयेत् भावयेत्सर्वं चैकविंशतिवारकं ।। बटी गुंजात्रयं खादेत् सर्बाजीणं च नाशयेत् ॥ २॥ अजीर्ण-कंटकाख्योऽयं रसो हंति बिषूचिकाः ।
अग्निमांद्यविषन्नोऽयं पूज्यपादेन भाषितः॥ ३ ॥ टोका-शुद्ध पारा, शुद्ध विषनाग, शुद्ध गंधक ये तीनों बराबर बराबर लेकर सब के बराबर काली मिर्च सब का कूट और कपड़छन करके छोटी कटहली के फलों के रस की इक्कीस भावना देवे तथा तीन रत्ती की प्रमाण गोलियां बांधे इन गोलियों को अनुपानविशेष से सेवन करावे तो सब प्रकार का अजीर्ण तथा सब प्रकार की विषचिका शांत होती है तथा यह अजीण कण्टक रस अग्निमांद्य-रूपी विष को नाश करनेवाला श्रीपूज्यपाद स्वामी ने कहा है।
८५-वातरोगे रसादियोगः रसभागो भवेदेकेा गंधको द्विगुणो मतः । त्रिगुणां तु विषं ग्राह्य कणभागवतुष्टयम् ॥१॥ मरिचं पंचभागं च सर्व खल्वे विमर्दयेत् । खल्वे तु दिनमेकं तु निंबूनीरैश्च मर्दयेत् ॥ २॥ सितसर्षपमात्रां तु बटिकां कारद्भिषक् । चतुरशीति बात-रोगान् चत्वारिंशत् कफोद्भवान् ॥ ३ ॥
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