________________
वैद्य - सार
८२ -- प्रददौ पंचबाणरसः
मृतसुताभ्रमं च विधाय पर्पटी तथा । अरण्यकदलीकंदमश्वगंधाशतावरी ॥१॥ त्रिकंटकामृता विश्ववानरीबीजयष्टिका । धात्री च शाल्मली सौरश्च तु सारेण मर्दयेत् ॥२॥ बटी गुंजाप्रमाणेन सिताक्षीरं पिबेदनु । पथ्यं च मधुराहारं पंचबाणरसोऽहागं ॥३॥ योगोऽयं सर्वरोगघ्नो विशेषं प्रदरे तथा । प्रमेहे सेतुवज्ज्ञ यो पूज्यपादेन भाषितः ॥ ४ ॥
टीका ---ारे की भस्म, अभ्रक भस्म एवं सोने की भस्म इन तीनों का बराबर लेकर एकत्रित कर घोंट कर पपड़ी बनावे फिर जंगली केले के कन्द के रस में, तथा असगंध, शतावरी, गोखरू गुर्च, सोंठ, कोंच के बीज, मुलहठी, आंवला, सेमल तथा गन्ना, इन सब के रस में एक एक दिन अलग अलग मर्दन करे एवं एक एक रत्ती के बराबर गोलियां बनावे । रोग की अवस्था को देख कर सर्व रोगों में प्रयोग करे और ऊपर से दूध, मिश्री पिलावे तो इससे सर्व प्रकार के धातु-सम्बन्धी रोग अच्छ े होते हैं। तथा खास कर प्रदर प्रमेह शांत है।ते हैं। पथ्य मीठा भोजन करे- ऐसा स्वामी जी ने कहा है ।
८३ - मन्दाग्नौ कालाग्निरसः
शुद्ध सूतं विषं गंधमजमोदं पलत्रयम् । सज्जीक्षारयवक्षारौ वह्निसैंधवजीरकम् ॥ १॥ सौवर्चलं विडंगानि टंकणं च कटुत्रयम् । विषमुष्टि सर्वतुल्यं जंबीररसमर्दितम् ॥ २ ॥ मरिचप्रमाणवाटिकां चाग्नि मान्द्यप्रशांतये ।
अशीतिबात जान रोगान् गुल्मं च ग्रहणीं जयेत् ॥ ३ ॥ रसः कालाग्निरुद्रोऽयं पूज्यपादेन निर्मितः ।
५३
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
टीका - शुद्ध पारा, शुद्ध बिषनाग शुद्ध आंवलासार गंधक ये एक एक पल तथा प्रजमोदा ३ पल, सज्जीखार १ पल, जवाखार १ पल, चित्रक १ पल, सेंधा नमक १ पल, सफेद जीरा - १ पल, काला नमक १ पल, बायविडङ्ग १ पल, भुना चौकिया सुहागा १ पल, सॉट मिर्च पोपल ये तीनों १-१ पल तथा शुद्ध कुचला सब के बराबर ले, कूट एवं कपड़
www.umaragyanbhandar.com