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________________ वैद्य-सार ८०-शीतज्वरे शीत-कण्टकरसः पारदं टंकणं तालक्रमाद्विगुणसंयुतं । कारवेल्ल्याः द्रवैर्मयस्ताम्रपानो विलेपयेत् ॥१॥ दिनकं बालुकायंत्रे पाचयेत्स्वांगशीतलं। चतुगुंजमिदं खादेत् पर्ण-खंडेन योजयेत् ॥२॥ दध्योदनमिदं पथ्यां रसोऽयं शीत-कंटकः । शीघ्र शीतज्वरं हंति पूज्यपादेन भाषितः ॥३॥ टीका-शुद्ध पारा १ भाग सुहागा २ भाग, एवं शुद्ध हरताल ४ भाग (इस क्रम से एक से दसरा दूना २ लेकर) सब का एकत्रित कर करेले के फल के रस में मर्दन कर के शुद्ध तामे के पत्र पर लेपन करे तथा उसको ताम्रपत्र सहित बालुका-यन्त्र में पकावे। जब स्वांग शीतल हो जाय तब उस को निकाल और घोंट कर रख लेवे तथा चार रत्ती के प्रमाण से पान के रस के साथ सेवन करे तो शीतज्वर दूर होवे। इसके ऊपर दहीभातका पथ्य है। पूज्यपाद स्वामी ने इसे शीतज्वर को नाश करनेवाला बतलाया है। ८१-शीतज्वरे शीतकुठाररसः पारदं रसकं तालं समं निर्गुडिकाद्रवेः। मर्दयेत्ताम्रपत्रण लेपयेद् वैद्यपुंगवः॥१॥ बालुकायंत्रमध्यस्थं दिनकं पाचयेत्तथा । तद्भस्म च समं योज्यं यत्नाद्भस्म च टंकण ॥२॥ कारवेल्याः द्रवैस्सर्व बटी गुंजाप्रमाणिका । नागवल्याः द्रवैया रसः शीतकुठारकः ॥ ३ ॥ टोका-शुद्ध पारा, शुद्ध खपरिया हरताल, तबकिया ये तीनों भाग बराबर लेकर नेगड़ की पत्ती के रस में मर्दन करके तथा शुद्ध ताम्र पत्र पर लेप करे और उसको बालुकायंत्र में १ दिन भर पकावे तथा जब पक जाय तब उसको ठंडा होने पर निकाल लेवे। उसके बराबर चौकिया सुहागे का फूला लेकर दोनों को करेले के रस के साथ मर्दन कर के एक एक रत्ती प्रमाण गोली बना लेवे और पान के रस के साथ देखें तो शीतज्वर शांत होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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