SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वैद्य - सार पंचगुंजमिदं खादेद्वज्रभेदिर सोह्ययं । त्रिबंधं नाशयत्याशु पूज्यपादेन भाषितः ॥ २ ॥ टीका - चित्रक, निशोथ, त्रिफला, सोंठ, मिर्च और पीपल यह प्रत्येक चीज समान भाग लेकर कूट कपड़छन कर के एकत्रित करे फिर इसमें दूना थूहर का दूध मिलाकर घोंटे, और सुखा कर तैयार कर रख ले। इसकी पांच रती की मात्रा है। अवस्था के अनुसार सेवन करे तो वराबर दस्त होवे । कब्ज को दूर करनेवाला यह रस पूज्यपाद स्वामी ने कहा है । ७८ - विबंधे इच्छा भेदिरसः सूतं गंधं तथा ज्येोषं टंकणं नागराभये । जयपाल बीज संयुक्त' इच्छाभेदी रसः स्मृतः ॥ १ ॥ चतुर्गुजाप्रमाणेन विरेकः कथ्यते बुधैः । शीघ्र विरेचयत्याशु पूज्यपादेन भाषितः ॥ २ ॥ ५१ टोका - शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, सोंठ, मिर्च, पीपल, भुना हुआ चौकिया सुहागा, सोंठ, बड़ी हर्र का छिलका, तथा जमालगोटा के शुद्धबीज इन सब का समभाग एकत्रित करके चार चार रती के प्रमाण से सेवन करे तो बराबर शीघ्र ही दस्त हो । ऐसा पूज्यपाद ने कहा है । ને ७६ ज्वरादौ ज्वर - कण्टकैरसः पारदं टंकणं चैव सैंधवं त्रिफला युतं । त्रिकटु च समं सर्व जयपाल सर्व तुल्यकं (१) ॥ १ ॥ चतुर्गु जमिदं खादेत् रसोऽयं ज्वरकंटकः । सर्वज्वरविनाशोऽयं पूज्यपादेन भाषितः ॥ २ ॥ टोका - शुद्ध पारा, सुहागे का फूला, सेंधा नमक तथा त्रिफला त्रिकटु ये सब समान भाग लेकर कूट कपड़छन करे तथा सब के बराबर जमालगोटा लेकर पोस कर रख लेवे । इसके चार चार रन्ती के प्रमाण से अनुपान विशेष के द्वारा सेवन करने से सब प्रकार का शांत होता है, यह पूज्यपाद स्वामी की उक्ति है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy