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इन ऊपर की पंक्तियों का आयुर्वेद में दो श्लोकों में कितना अच्छा विवेचन किया गया । है, वह ध्यान देने योग्य है :
विसर्गादानविक्षेपैः सोमसूर्यानिलाः यथा धारयन्ति जगद्द हं कफपित्तानिलास्तथा ॥
अर्थात् — जैसे छोड़ना, ग्रहण करना, विक्षेप इन क्रियाओं से चन्द्रमा, सूर्य, और वायु संसार को धारण किए हुए हैं। इसीप्रकार वात, पित्त, कफ शरीर को धारण किये हुए हैं। इसी विषय को चरक के विमानस्थान में - 'पुरुषोऽयं लोकसम्मित इत्युवाच भगवान् पुनर्वसुरात्रेयः ॥ यावन्तो हि मूर्त्तिमन्तो लोके भावविशेषास्तावन्तः पुरुषे यावन्तः पुरुषे तावन्तो लोके' । इत्यादि पंक्तियों में पुरुष और लोक का सादृश्य सिद्ध किया है। जैनमत के अनुसार तो यदि मनुष्य अपनी कमर पर दोनों हाथ टेककर खड़ा हो जाय, बस वही स्वरूप लोक का है। देखिये, यहाँ जैनमत और आयुर्वेद का कितना सामंजस्य है, जो कि पदार्थों के सामंजस्य से ही नहीं, आकार के सामंजस्य से भी वैसा ही है।
- पूज्य उमास्वातिकृत दशाध्याय सूत्र के पाँचवें अध्याय के “शरीरखाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानां, सुखदुःखजीवितमरणोपमहाश्च” – इन दो सूत्रों में रोगों के और जीवों के संबंध को भले प्रकार से दर्शा दिया है।
जैसा कि मैंने पहले लिखा है कि पंचतत्वों से ही रस बनते है इस बात का चरक के एक ही श्लोक में कैसा अच्छा वर्णन किया गया है :
क्ष्मभोऽग्निक्ष्मां तेजःखः वाय्वग्न्यनिलगोनिलैः इयोल्वणैः क्रमाद्भूतैः मधुरादिरसोद्भवः ॥
और वायुतत्त्व से कसैला (हड़ आदि) रस बनते हैं। जाय, तो प्रत्येक रस में प्रत्येक तत्त्व के अंश हैं
पृथ्वी जलतत्व से मधुर, अनि पृथ्वी तत्त्व से अम्ल, जल और अमित से लवण, आकाश-वायु तत्त्व से कटु (मिरच आदि), अग्नि और वायुतत्त्व से तिक्त (नीम आदि), पृथ्वी यह ठीक है कि यदि सूक्ष्म विवेचन किया उक्त वर्णन में केवल प्रधानता बताई गई है। जैनधर्म में आयुर्वेद का स्थान
जैनधर्म में तो आयुर्वेद का खास स्थान है। इसके द्वादशांग शास्त्र में जो दृष्टिवाद नाम का बारहवाँ अंग है (जिसके पाँच भेद किये हैं और जिसका एक भेद पूर्वगत है ) उसको चौदह प्रकार का बतलाया है। इनमें जो प्राणवाद नाम का पूर्वशास्त्र है, उसमें विस्तार• पूर्वक वैद्यक शास्त्र का वर्णन किया गया है, जो त्रिकालाबाधित है। यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि जैन तीर्थंकर केवल - ज्ञान - विभूति सहित होते थे, उनका ज्ञान पूर्णज्ञान होता था, उसमें किसी भी प्रकार की भूल होने की संभावना नहीं। इस अंग के लाखों श्लोकों में
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