________________
वैद्य-सार
मर्दयेद्विजयानीरैः कृष्णधत्तूरजद्रवैः । प्रत्येकं दिनमेकं तु गुंजामात्रवटोकृतम् ॥३॥ एकां द्वित्रिवटीं चैव भक्षयेन्नागरैः युताम् । ग्रहण्यां चामशूले वा चातिसारे विशेषतः ॥४॥ मंदाग्नित्वं ज्वरं मूर्च्छा नाशयेन्नात्र संशयः । सर्व रोग समूहघ्नः रामवाणरसोत्तमः ॥५॥ वाणवद्रामचन्द्रस्य पूज्यपादेन भाषितः ॥
टीका - शुद्ध पारा, रस सिन्दूर, अभ्रक भस्म, लौह भस्म, शुद्ध विषनाग तीन तीन माशा, तथा ६ माशा अफीम, तालमखाने के वीज, कौड़ी की भस्म, सुहागे का फूल तीन तीन माशा, इन सब को एकत्रित कर कज्जल के समान घोंट कर भांग के स्वरस से अथवा. काले धतूरा के काढ़े से एक एक दिन घोंट कर रतो रती के बराबर गोलो बनावे । यक दो या तीन गोली सोंठ के काढ़े के साथ सेवन करे तो ग्रहणी, ग्रामशूल अतिसार, मंदाग्नि, ज्वर, मूर्च्छा इन सब को यह रामबाण रस लाभ पहुँचाता है यह पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ उत्तम रामवाण रस है ।
५१ - वाजीकरणे त्रिलोकमोहनरसः
दरदं वत्सनाभं च धूर्तबीजाहिफे निकम् । समुद्रशोषं बज्राभ्र सिंदूरं च समांशकम् ॥१॥ मयेतप्तखल्वे तु त्रिदिन बिजयाद्रवैः । धूर्ततैलेन सप्ताहं वटीं गुंजाप्रमाणिकाम् ॥२॥ मधुना च समायुक्तां त्रिगुंजां च समालिहेत् । सर्करां च क्षीर-घृतं चानुपानं च पाययेत् ॥३॥ मधुराहारं भुजीत गोधूमांगारपाचितम् । परमान्नं घृतं शुभ्रशर्करया सह भोजयेत् ॥४॥ त्रिलोकमोहनो नाम रसः सर्वसुखकरः । शुक्रस्तंभ शुक्रवृद्धिं करोति मदमदनं ॥५॥ कामिनीतोषणकरो पूज्यपादेन भाषितः ।
३.३
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
2. टीका - शुद्ध सिंगरफ, शुद्ध विषनाग, शुद्ध धतूरा के बीज, शुद्ध अफीम, समुद्रशोष, बाभ्रक की भस्म और रस सिन्दूर सब बराबर बराबर लेकर तये हुए खल में तीन दिन
www.umaragyanbhandar.com