________________
वैद्य-सोर
तक लगातार भांग के स्वरस से घाँटे। बाद, सात दिन तक धतूरा के तैल से घोंट कर एक एक रती प्रमाण को गोलो बनावे। शहद के साथ तीन रत्तो के प्रमाण से सेवन करे तथा खोर बनाकर सेवन करे तो यह त्रिलोक मोहन नाम का रस सबको सुखी करनेवाला तथा वीर्य का स्तम्मन एवं घोर्य को वृद्धि करनेवाला है। काम से पोड़ित मनुष्य को तथा कामिनियों को संतोष देनेवाला है। यह पूज्यपाद स्वामी का बनाया हुआ सर्वश्रेष्ठ
रस है।
५२-वातरोगे स्वच्छन्द-भैरवरसः शुद्धसूतं मृतं लौह ताप्यं गंधं च तालकं । पथ्याग्नि-मन्थनिर्गुडो त्र्यूषणं टंकणं विषं ॥१॥ तुल्यांशं मर्दयेत् खल्वे दिनं निर्गुडिकाद्रवैः। मुंडीद्रावैः दिनकन्तु द्विगुजं वटकं कृतम् ॥२॥ भक्षयेत् सर्ववातात्तः नाम्ना स्वच्छन्दभैरवः।।
सर्ववातविकारतः पूज्यपादेन भाषितः ॥३॥ टीका-शुद्ध पारा, गंधक, लौहभस्म, सोनामक्खी का भस्म, हरताल भस्म, बड़ी हर्र का छिलका, गनयारी सम्हालू के बीज, सोंठ, मिर्च, पीपल, सुहागा, विषनाग, इन सब को बराबर बराबर लेकर सम्हालू को पत्ती के स्वरस में तथा गोरखमुंडी के स्वरस में एक एक दिन घोंटकर दो दो रत्ती की गोली वनावे और इसको अनुपान-विशेष से वातपोड़ित मनुष्य सेवन करे तो अवश्य ही लाभ हो। यह सर्व प्रकार के बात-विकारों को नाश करनेवाला स्वच्छन्द भैरव रस पूज्यपाद स्वामी ने कहा है।
५३-सन्निपात्तादौ वीरभद्ररसः यूषणं पंचलवणं शतपुष्पादिजीरकान् । क्षारत्रयं समांशेन गृह्यत पलसंमितम् ॥१॥ गंधकं सूतमनंच सर्व प्राह्य पलं पलम् । पाकस्य रसेनैव दिनमेकं विमर्दयेत् ॥२॥ वीरभद्र इति ख्यातो रसोऽयं माषमात्रकः। सन्निपातं हरेत शीघ्र चित्रका कबारिणा ॥३॥.. ... पथ्यं क्षीरोदनं देयं पूज्यपादेन भाषितः। .....
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com