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________________ वैद्य-सार साथ सेवन करे तो इससे वीर्य का स्तम्भन होता है, इसको सेवन करने के समय मधुर भोजन करे, दूध तथा शक्कर का सेवन करे तो उसके पश्चात् ही वीर्य की वृद्धि करता है तथा इसका सेवन करने से सैकड़ों स्त्रियों को तृप्त कर सकता है जगत को संमोह करनेवाला यह रतिलीलानामक रस सर्वश्रेष्ठ है। ४६ -अम्लपित्तादौ सूतशेखररसः शुद्धसूतं मृतं लौहं टंकणं वत्सनाभकं । व्योषमुन्मत्तबीजं स्याद्वाधकं ताम्रभस्मकं ॥१॥ चातुर्जातं शंखभस्म बिल्वमजा सुचारकम् । एतानि समभागानि खल्वमध्ये विनिक्षिपेत् ॥२॥ भृगराजरसैनेव मईयेदिवसत्रयम्। बिल्वलाजकषायेण चोशीरक्वथनेन वा ॥३॥ चणमानवटीं कृत्वा छायाशुष्कं मधुप्लुतम् । भक्षयेदम्लपित्तघ्नं छर्दिशूलविनाशनं ॥५॥ पूज्यपादेन कथितः सेोऽयंतु सूतशेखरः । टीका-शुद्धपारा, कान्तलौह भस्म, सुहागे का फूला, शुद्ध विषनाग, सोंठ, काली मिर्ड, पीपल, धतूरा के बीज, शुद्ध गंधक, तोम का भस्म, दालचीनी, इलायची, तेजपत्न, नागकेशर, शंख भस्म, बेलगिरी, और नरकचूर इन सबको समान भाग लेकर खरल में डालकर भंगरा के रस से तीन दिन तक लगातार घोंटे तथा बेल के काढ़े एवं लाई के काढ़े से क्रमशः तीन तीन दिन तक पृथक् पृथक् घोंट कर चना के बराबर गोली बना कर छाया में सुखावे और और अम्लपित्त और शूल का नाश करनेवाला सूतशेखर रस पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ है। ५०-ग्रहण्यादौ रामवाणरसः शुद्धपारदसिन्दूर चाभ्रकं लौहजं विषं। प्रत्येकं निष्कमात्र स्याद्विनिष्कं चाहिफेनकम् ॥॥ काकिलाक्षस्य बीजानि बराटं टंकणं तथा।। प्रत्येक निष्कमात्र स्थाविज्ञ यम् कालोपमम् ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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