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वैद्य-सार
४७-प्रमेहचन्द्रकलारसः एलातु कर्पूरशिलासुधात्रीजातीफलं गोक्षुरशाल्मलोत्वक् । सूतं च बंगायसभस्म एतत्सम समं तत्परिभावयेश्च ॥१॥ गुड़ चिकाशाल्मलिकारसेन निष्कार्धमानं मधुना च दद्यात्।।
घद्ध्वा गुटी चन्द्रकलेतिसंशा मेहेषु सर्वेषु नियोजयेश्च ॥२॥ टीका-छोटी इलायची, शुद्ध कपूर, शुद्ध शिलाजीत, आँवला, जायफल, गोखरू, सेमल की छाल, शुद्ध पारा, बंगभस्म और लौहभस्म ये सब बराबर बराबर लेकर खरल में गुर्च तथा सेमर के कंद के स्वरस में घोंट कर गोली बनावे और सुबह शाम ॥ माशे की मात्रा से शहद में सेवन करने से सम्पूर्ण प्रकार के प्रमेह शान्त होते हैं।
४८ वाजीकरणे रतिलीलारसः स्वर्णभस्म बत्सनाभं व्योमसिन्दूरसंयुतम् । दरदं धूर्तबीजं च जातीपां निजातकम् ॥१॥ अहिफेनं वराटं व वाधिशोकं समांशकम्। मर्दयेत्तप्तखल्वे तु त्रिदिनं विजयाद्रवः ॥२॥ धूर्तबीजस्य तैलेन त्रिदिनं मर्दयेदृढम् । कुक्कुटांडरसेनैव सप्ताहं भावयेत् पुनः ॥३॥ रतिलीलारसः सेोऽयं गुंजात्रयमधुप्लुतम्। भक्षयेद्वीजरोधं स्यान्मधुराहारभुक् भवेत् ॥४॥ क्षीरशर्करया धातुवीर्यवृद्धिं करोति सः। रमयेत् त्रिशतं नित्यं द्रावयेदबलाकुलम् ॥५॥ जगत्संमोहकारी स्यात् पूज्यपादेन भाषितः ।
रतिलीलारसो नाम सर्वरोगविनाशकः ॥६॥ टीका-सोने का भस्म, शुद्ध सिंगिया, अभ्रकभस्म, रससिन्दूर, शुद्ध सिंगरफ, शुद्ध धतूरा के बीज, जायपत्री, दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता, शुद्ध अफीम, कौड़ी का भस्म तथा समुद्रशोष ये सब बराबर लेकर तपे हुए खरल में तीन दिन तक भांग के रस से घोंट कर धतूरा के बीज के तैल से तीन दिन तक घोटे, फिर लीची की पत्ती के स्वरस से सात दिन तक घोटे और गाली बांध कर रख लेवे। तीन तीन रत्ती के प्रमाण से मधु के
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