________________
वैद्य-सार
४५-शूलादौ शूलकुठाररसः त्रिकुटः त्रिफलासूतं गंधटंकणतालकं । ताम्रविषविषमुष्टिं च समभागं समाहरेत् ॥१॥ भागस्य विंशतियुतं जयपालं च पृथक् ददेत् । सर्व भृङ्गरसे पिष्ट्वा गुलिका कारयेत् भिषक् ॥२॥ प्रायः शूलकुठारोऽयं विष्णुचक्रमिवासुरान् ।
सर्वशूले प्रयुक्तोऽयं पूज्यपादमहर्षिणा ॥३॥ टीका--त्रिकटु, त्रिफला, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध सुहागा, हरतालभस्म, ताम्रभस्म विषनाग और शुद्ध कुवला ये सब एक एक भाग तथा बीस भाग शुद्ध जमालगोटा लेवे । सबको भंगरा के रस में घोंट कर एक रत्ती प्रमाण गाली बनावे और एक एक गोली गर्म जल से देवे तो कैसा ही शुल हो अवश्य ही लाभ होगा। जिस प्रकार विष्णु के सुदर्शनचक्र से असुरों का नाश हुआ उसी प्रकार इससे शूल का नाश होता है।
४६-अजीर्णादौ अर्धनारीश्वररसः विषं सगंधं हरितालकं च मनःशिला निस्तुषदंतिवीज ।
सूतं सताम्र दरदैः समेतं प्रत्येकमेतत् समभागकं स्यात् ॥१॥ निर्गुडिपत्रस्य रसेन पेष्यं धतूरपत्रं सहमंजरी च। दिनत्रयं मर्दित एव सम्यक् गुंजाप्रमाणां गुटिकां प्रकुर्यात् ॥२॥ छायाविशुष्कं सगुडं च भक्ष्पं अपक्कदुग्धमनुपानमेव ।
सकोष्णवारिसदनानुपानं रसोऽर्धनारीश्वरनामधेयः ॥३॥ टीका--शुद्ध विष, शुद्ध गंधक, हरिताल भस्म, शुद्ध मेनशिल, शुद्ध जमालगोटा, शुद्ध पारा, ताम्रभस्म तथा शुद्ध सिंगरफ ये सब समान भाग लेकर सम्हालू की पत्ती के रस की भावना देवे फिर धतूरे के पत्तों के रस की बाद में तुलसी के पत्तों को रस की भावना देवे। इन तीनों के रस की तीन दिन तक लगातार भावना देने के पश्चात् एक एक रत्ती प्रमाण गोली बांधे और छाया में सुखावे। पुराने गुड़ के साथ सेवन करने के बाद एक पाव कच्चा दूध पिये और यदि अजीर्ण हो तो यह गाली गर्म जल के भनुपान से देवे। यह अर्धनारीश्वर रस उत्तम है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com