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वैद्य - सार
१६ - नवज्वरे नवज्वरहर टिका वचामृता रसं गंधं मरिचं ताम्र भस्मकं । टंकणं च समं कृत्वा अकोलरसमर्दितां ॥१॥ द्विदिनं गुंजमात्रां तु वटिकां कारयेद्भिषक् । आर्द्रस्य रसैर्देया नवज्वरहरी व सा ॥२॥ पथ्यं दध्योदनं कुर्यात् पूज्यपादेन भाषिता 1
टीका - दूधिया बच, गिलोय, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, काली मीर्च, ताम्र भस्म, सुहागे का भस्म इन सबके । एकत्रित कर अंकोल के स्वरस में दो दिन तक मर्दन करके एक एक रती की गोलियां बांध लेवे तथा अदरख के रस के साथ सेवन करे तो नवीन ज्वर शांत हो जाता है। इसके ऊपर दही-भात का पथ्य सेवन करे । यह पूज्यपाद स्वामी की कही हुई नवज्वरहर वटिका उत्तम है ।
२० --- नवज्वरे करुणाकररसः
रसगंधकं भागैकं तथा लौहटंकणं । मनःशिला मयस्कांतं नागं गगनमेव च ॥ १॥ सवंगशुल्वसंयुक्तं कृत्वा कज्जलिकां बुधैः । लौहपात्रे पचेत् सम्यक् यावद्दारुणवर्णता ||२|| करुणाकररसो नाम नवज्वरनिवारणः । निमित्तदेषदोषेभ्यञ्चानुपानं प्रयोजयेत् ॥३॥ पूज्यपादकृतो योगः नराणां हितकारकः । सर्वरोग समूहो कथितो विज्ञसंम्मतः ॥४॥
टीका - शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, लौहभस्म, कच्चा सुहागा, शुद्ध मैनशील, कान्त, लौहभस्म, शीसाभस्म, अभ्रक भस्म, बंगभस्म और ताम्र भस्म ये सब बराबर बराबर लेकर कज्जली बनावे और लोहे की कड़ाही में डालकर पकावे, जब पकते पकते लाल वर्ण हो जाय तब तैयार समझे। यह करुणाकर नाम का रस नवीन ज्वर को नाश करनेवाला है। इसको ज्वर तथा वात, पित्त, कफ दोषों के अनुसार अनुपान भेद से सेवन करना चाहिये । यह पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ योग मनुष्यों का हित करनेवाला, संपूर्ण रोगों को नाश करनेवाला विद्वानों द्वारा मान्य कहा गया है
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