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वैद्य-सार
दिनेनैकेन सततं सूर्यतापेन शोषितं । चतुर्थाशविषं ग्राह्य रससिद्धिर्भषिष्यति ॥२॥ भक्षयेद्गुञ्जमात्रेण चाकस्य रसेन तु। सर्वाणि संनिपातानि त्रिदोषद्वन्द्वजं हरेत् ॥३॥ सर्वशैत्यं च मूकत्वं प्रलापं तन्द्रिकं हरेत् ।
भूतादिभैरवो नाम पूज्यपादेन भाषितः ॥४॥ टीका-शुद्ध पारा तथा शुद्ध गंधक दोनों समान भाग लेकर कजली बनावे फिर दोनों के बराबर सोंठ, मिर्च, पीपल लेकर मिलावे और नीम की पत्ती के स्वरस में दिन भर घोंटता रहे और धूप में सुखावे तत्पश्चात् उस सम्पूर्ण औषधि से चौथाई शुद्ध विष लेकर मिलावे और खूब घोंटे बस रस तैयार होगया। इसको १ रत्ती प्रमाण अदरख के रस के साथ सेवन करने से सर्व प्रकार के सन्निपात, त्रिदोषज ज्वर, ईन्द्वज ज्वरों को नाश करता है तथा सर्व प्रकार के शीत रोग, मूकता, प्रलाप, तंद्रा इत्यादि रोगों का भी नाश करता है। यह भूतादिभैरव नाम का रस पूज्यपाद स्वामी का बनाथा हुआ बहुत उत्तम है।
१८-सर्वज्वरे चन्द्रोदयरसः रसगंधं तथा वगं चाभ्रकं समभागतः। मेलयित्वा तु पंगेन समं सूतं विमर्दयेत् ॥१॥ तत्रकीकृत्य धंगानं जंबीराम्लेन मर्दयेत् । सामान्यपुटमादद्यात् सप्तधा भावितो रसः ॥२॥ कुमार्या चित्रकेणापि भावयित्वा तु सप्तधा। गुडेन जीरकेणापि ज्वराजीणे प्रयोजयेत् ॥३॥ इत्येवं रोगतापजचन्द्रोदयरसः स्मृतः।
सर्वदोषविनिर्मुक्तः पूज्यपादेन भाषितः ॥४॥ टीका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, वंग भस्म और अभ्रकरस ये चारों बराबर लेवे, यहां पर पहले बंग को गलावे जब बंग गल जाय तब उसमें पारा डालकर मिलावे पश्चात् दूसरी
औषधि मिलावे और जंबीरी नीबू के रस से मर्दन करे और पुट देवे, इस प्रकार सात बार भावना देकर पुट लगावे, कुमारी के स्वरस से तथा चित्रक के स्वरस से सात सात भावना देकर पुट लगावे इस प्रकार जब इक्कीस पुट हो जाय तब तैयार हुआ समझे। यह पुराना गुड तथा सफेद जीरा के साथ सेवन करने से सब प्रकार का ज्वर एवं अजीर्ण रोग को नाश करनेवाला है। यह सब दोषों से रहित चन्द्रोदय रस पूज्यपाद स्वामी को कहा हुमा है।
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