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________________ वैद्य-सार बातरोग, क्षय, शोथरोग, पांडुरोग, कफजन्य रोग, प्लीहा, गुल्मरोग, सांग. का शुल, उदरशूल, खंजपना, लंगड़ापन, स्त्रियों के रक्त गुल्म तथा और भी असाध्य रोगों को यह रस नाश करता है जैसे जिन भगवान पापों को नाश करते हैं । १५-उदर-रोगे राजचंडेश्वररसः रसं गंधं विषं ताम्र सप्ताहं मर्दयेत् दृढं। निर्गुड्या कनिर्यासैः पृथक् सिद्धो भवेद्रसः ॥१॥ राजचण्डेश्वरो नाम गुंजैकं चाई-वारिणा। उदररोगनिवृत्यर्थ पूज्यपादेन भाषितः ॥२॥ टीका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध विष, ताम्रभस्म इन चारों को सात दिन तक निर्गुन्डी के स्वरस में तथा अदरख के स्वरस में अलग अलग घोंटकर एक एक रती की गोली बनावे और उस एक एक गोली को सुबह, शाम अदरख के स्वरस के साथ सेवन करे तो सर्व प्रकार के उदर रोग शांत हो जाते हैं ऐसा पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। १६--वरादौ ज्वरांकुशरसः सूतभस्म दरदं समं मृतं शंखनाभिवरशुद्धगंधकं । नागरक्वथितमर्दितं च तद्वलमात्रमिव नूतनज्वरे ॥१॥ आर्द्रकद्रवविमिश्रितं ददेव त्र्यूषणस्य त्रिफलारजःसमैः। पूज्यपादकथितो महागुणः सर्वदोषप्रशमः ज्वरांकुशः ॥ -. टीका-पारे का भस्म, शुद्ध सिंगरफ, ताम्रभस्म, शुद्ध शंखनाभि, शुद्ध गंधक इन सबको बराबर लेकर सोंठ के काढ़े से मर्दन करके गोली बनावे और इसको एक बल्ल अथवा रोगानुसार मात्रा कल्पना करके नवीन ज्वर में अदरख के रस के साथ तथा सोंठ, कालीमिर्च, पीपल के काढ़े के साथ और त्रिफला के काढ़े अथवा चूर्ण के साथ देवे, तो सर्व प्रकार का ज्वर शांत होवे। १७–सन्निपातादौ मूतादिभैरवरसः सूतं च गंधकं चेति ग्राह्यचैव समांशकम् । समांशव्योषसंमिश्रं मर्दयेन्निम्ब-चारिणा ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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