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वैद्य-सार
२१–आमादौ मेघनादरसः हिंगुलं टंकणं व्योष सैधवं त्रिवृतानि च। दन्ती हिंगुविडंगं च दीप्ययुग्मं समांशकम् ॥१॥ तच्चूर्णसमभागं च जैपालफलमिश्रितः। मर्दयेत्खल्वमध्ये तु जंबीररसभावितः॥२॥ बटिकां गुंजमात्रषु उष्णांबुना पिवेन्नरः। आम विरेचनं कुर्यात् मेघनादस्त्रिदोषजित्॥३॥ पंचगुल्मं क्षयं पांडुकामलाजीर्णदुर्बलं । मूत्ररोग हरेच्छवासं कासप्लीहमहोदरान् ॥४॥ आकरसेन नाशयति अम्लप्लीहजलोदरान् । शूलहृद्रोगदुर्नामकृमिकुष्ठहलीमकं ॥५॥ मंडलं गजचर्माणि योगेन तिमिरापहः । मांसोदरे च मंदाग्नौ मधुना खल्वरोचके ॥६॥ मेघनादरसः प्रोक्तः त्रिदोषमलनाशनः । अनुपानविशेषेण रोगान् मुंचति कार्मकान् ॥७॥
पूज्यपादकृतो योगो नराणां हितकारकः। टीका-शुद्ध सिंगरफ, शुद्ध सुहागा, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, सेंधा नमक, निशोथ, दन्ती, हींग, वायविडंग, अजमोद, अजवायन ये सब बराबर बराबर लेवे तथा इन सबके बराबर शुद्ध जमालगोटा मिलावे और खल में जंवीरी नींबू के रस में भावना देकर एक एक रत्ती की गोली बनाकर प्रातःकाल एक एक गोली गर्म जल के साथ सेवन करे तो इससे आमदोष का विरेचन होता है, तथा यह मेघनाद रस तीनों दोषों को जीतनेवाला पांचों प्रकार के गुल्मरोग, क्षय, पांडु, कामला, अजीर्ण, दुर्बलता, मूत्ररोग, श्वास, खाँसी, तिल्ली, महान उदर रोग, अदरख के रस के साथ सेवन करने से अम्लरोग प्लीहा, जलोदर, शूल, हृदयरोग, बवासीर, कृमिरोग, कुष्ठरोग, हलीमक, मंडल (चकते पड़ना) गजचर्म (गजकर्ण रोग) विशेष अनुपान से तिमिर रोग को भी, मांसोदर, मंदाग्नि अथवा मधु के साथ सेवन करने से सर्व प्रकार के अरोचक को और त्रिदोष का नाश करनेवाला है यह मेघनाद रस अनुपान-विशेष से अनेक प्रकार के रोगों को नाश करता है। यह पूज्यपाद स्वामी का बनाया हुआ योग मनुष्यों का हित करनेवाला है।
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