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________________ वैद्य-सार १२- उपदंशादौ कंदर्पो रसः सुरसं दशभोगं च गंधकस्य तथैव च । नवसारार्धभागं तु सर्वमेवं प्रमर्दयेत् ॥१॥ हंसपादी जयंती च स्वरसैः कृष्णधूर्तकैः । कोचकूप्यां विनिक्षिप्य चावरुध्य प्रयत्नतः ॥२॥ ज्वालयेदग्निं यत्नेन दिनत्रयविनिर्मितम् । स्वांगशीतलमुद्धत्य ग्राह्य यत्नेन भस्मकं ॥३॥ देवकुसुमं च कर्परं दापयेत् समभागकम् ।। गुंजाद्वयं त्रयं चैव मधुना लेहयेन्नरः॥४॥ उपदंशहरप्रयोगोऽयं धातुवर्धनतत्परः। कंदर्पसमतनुं कृत्वा पूज्यपादेनभाषितः ॥५॥ टीका-शुद्ध पारा १० भाग, शुद्ध गंधक १० भाग और नौसादर ५ भाग, सबको एकत्रित कर कजली बनावे तथा हंसराज, गनयारी, (अरनी) काला धतूरा इसके स्वरस में मर्दन करके सुखावे तत्पश्चात् काँच की शीशी में भरकर बालुकोयंत्र में तीन दिन तक पकावे जब ठीक पाक हो जाय तब ठंडा होने पर यत्नपूर्वक निकाल ले तथा उसमें लवंग और कपूर समान भाग मिलाकर २ रत्ती अथवा तीन रत्ती मधु के साथ दे, तो यह अनेक कठिन से कठिन उपदंश को नाशकर मनुष्य के शरीर को कामदेव के सदृश बनाकर धातु को बढ़ाने में समर्थ होता है यह पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। १३-विषमज्वरे चतुर्थज्वरहरवटिका टंकणं दरदं तं कणावोलं तु तुत्थकं । कांतं गंधं शिलातालं नवसारं तथा विषं ॥१॥ कारवल्लीरसैर्मर्च वटी गुंजाप्रमाणिका। गुडेन सह मिश्रं तु चातुर्थिकहरीपरम् ॥२॥ टीका-शुद्ध चौकिया सुहागा, शुद्ध सिंगरफ, शुद्ध पारा, पीपल, शुद्ध बोल, शुद्ध तूतिया, कान्तिसार, शुद्ध आंवलासार गंधक, शुद्ध मेनशिल, शुद्ध तकिया हरताल, शुद्ध नौसादर, शुद्ध सिंगिया, इन सबको घोंट, कर कूट, पीस और कपड़छन कर, करेले के स्वरस में १ रत्ती प्रमाण गोली बनावै तथा पुराने गुड़ के साथ चौथिया ज्वर माने के पहले, एक एक गोली खाने से लाभ होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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