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________________ वैद्य-सार स्वरस में एक प्रहर तक मर्दन करके एक एक रत्तो प्रमाण गोली बांध लेवे और छाया में सुखावे। इस गोली को अदरख के रस के साथ देने से सन्निपात शान्त होता है तथा यह सब दोषों का नाश करनेवाला है, ऐसा पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। ११–जलोदरादौ पंचाग्नि-गुटिका पंचाग्निः पंचलवणं द्वितारं रामठं बचा। कटुनयाजमोदा च सर्षपं जीरकद्वयं ॥१॥ लशुनं निवृताप्रन्थिं समभागानि कारयेत् । सुधाक्षीरेण संपिण्य सूरणस्योदरे क्षिपेत् ॥२॥ घृतालिप्तं च कर्तव्यं पचेद् गोमयवह्निना। स्वांगशीतलमादाय सर्व पिष्ट्वा सुधारसैः ॥३॥ कोलबोजार्धमात्रेण बटकान् कारयेद्भिषक् । लेहयेदधिसारेण जलकूम च कुम्भजे ॥४॥ पथ्यं दध्योदनं तक हिता सर्वोदरापहा । पूज्यपादप्रयुक्तेयं सर्वोदरकुलान्तनी ॥५॥ टीका-पाँच भाग चित्रक, पांचो नमक (समुद्र नमक, काला नमक, संधा नमक, विड नमक, सांभर नमक) सजीक्षार, जवाखार, होंग दूधिया, वच, सोंठ, मीर्च, पीपल अजमोदा, सफेद सरसो, दोनों जीरा, लहसुन, निशोथ, पीपरामूल ये सब एक एक भाग लेकर सबको कूट कपड़छान कर थूहर के दूध से पीस कर सूरण का कुछ दल निकाल कर उसके भीतर सब दवाइयों को भर दे और उसका घी से लिप्त कर ऊपर से कपड़मट्टी कर सुखावे, इसके उपरांत जंगली कंडों की अग्नि में पकावे, जब स्वांग शीतल हो जाय तब सबको फिर से थूहर के दूध से पीस कर बेर की गुठली के आधे परिमाण के बराबर गोली बांधे और उस गोली को दही के तोड़ से एक एक या दो दो गोली खावे । इसके खाने से जलोदर, कूर्मोदर शांत होते हैं। इसके ऊपर दही भात पथ्य है। यह पूज्यपाद स्वामी की कही हुई सब प्रकार के उदर रोगों को नाश करनेवाली है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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