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वैद्य-सार
प्रत्येकं चूर्णयेत् कर्ष गव्याश्च द्वादशं पलम् । घृताश्चतुर्गुणं तोयं पक्त्वा घृतावशेषितं ॥२॥ तेनाभ्यंगैः मर्मघातं व्रणं नाडीवणं तथा।
स्रवन्तं सूक्ष्मछिद्रं च पूरयेन्नात्र संशयः ॥ ३॥ टीका-जायपत्री, परवल के पत्ता, नीम के पत्ता, खस, पूतकरंज की पत्ती, मंजीठ, मुलहठी, दारु हल्दी, तेजपत्ता, सारिखा ये सब एक-एक तोला, गाय का घी ४८ तोला, तथा पानी घी से चौगुना लेकर सब को मिला पकावे । जब सब पानी जल जाय सिर्फ घी मात्र बाकी रह जाय तो घी निकाल कर छान लेवे। यह दवा हर प्रकार के फोड़ों पर लगावे तो इससे बहनेवाला बारीक छेदवाला भी नाडीव्रण ठीक हो जाता है।
१५४-व्रणादौ अपामार्गादियोगः अपामार्गस्य पत्रोत्थद्रवेणापूरयेद् व्रणं। किंवा तद्वीजचूर्णेन व्रणं दुष्टं प्रलेपयेत् ॥१॥ पुरातनगुडंस्तुल्यं टंकणं सूक्ष्मपेषितं ।।
तद् वा पूरयेच्छीघ्र व्रणं नाडीव्रणं महत् ॥ टीका-अपामार्ग के पत्तों का स्वरस निकाल कर उस रस से फोड़ा भरे अथवा अपामार्ग के बीजों को पीस कर दुष्ट फोड़े के ऊपर लेप करे अथवा पुराना गुड़ तथा सुहागे का फूला इन दोनों को खूब मिला कर उसकी बत्ती बना कर फोड़े में भरने से फोड़ा भर कर अच्छा हो जाता है।
१५५-ज्वरादौ प्राणेश्वररसः भस्म सूतं यदा कृत्वा माक्षिकं चाभ्रसत्वकं । शुल्वभस्मापि संयोज्य भागसंख्याक्रमेण च ॥१॥ तालमूलीरसं 'दत्त्वा शुद्धगंधकमिश्रितं ।। मर्दयेत् खल्बमध्ये च नितरां यामयो यम ॥२॥ निक्षिप्य काचकृप्यां च मुद्रया कूपिकां तथा ।। खटिकामृदं समादाय लेपयेत् सप्तवारकं ॥३॥ यथारीत्या परिस्थाप्य पूरयेत् बालुकामयं । यंत्रं प्रज्वालयेद्यामं चतुरोव हिना पुनः॥४॥
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