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________________ वैद्य-सार करे तथा उसके ऊपर सोंठ, मिर्च, पीपल, अदरक इनका रस पीवे | इसका सेवन करने से सन्निपात के द्वारा मरा हुआ भी प्राणी जो जाता है । यह पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ योग सन्निपात रोग को अन्त करनेवाला है। १४६-जीर्णज्वरे औदुम्बरादियोगः औदुंबरांकुरं चैव मधुवृक्षं च सूतकम् । . नागरं लशुनं चैव गंधं पाषाणभेदकम् ॥१॥ जीरकं तगरं धान्यं चूर्णयेत् सर्वसाम्यकम् । . उष्णोदकं पिवेत्तच्च पुराणज्वरनाशनम् ॥२॥ बालमध्यमवृद्धानां कटुक्याश्च रसेन च । निष्कद्विनिष्कमात्रेण सितया सह संयुतः ॥३॥ पिवेच्च ज्वरनाशाय परं पाचनमुच्यते।। कोठे बद्धरसेनैव चामयागुडसंयुतं ॥४॥ अग्निधूमस्य पानेन हिक्कायाश्च विनाशनम् । दूर्वादाडिमपुष्पेण मधुकैः सह संयुतं ॥५॥ स्तनक्षीरेण संयुक्तं हिक्कावंशविनाशनम् | औदंबरादियोगोऽयं पूज्यपादेन भाषितः॥६॥ टीका-ऊमर के अङ्कर, महुवा की छाल, शुद्ध पारा, सोंठ, लहसुन, शुद्ध गंधक, पाषाणभेद्, सफेद जीरा, तगर और धनिया सब को बराबर-बराबर एकत्रित कर पहले पारे और गंधक की कजली बनावे, फिर बाकी औषधियों का चूर्ण कर उस कजली में मिलाकर घोंटे, जब बराबर मिल जावे तब इसको कुटकी के स्वरस अथवा हिम के साथ एवं मिश्री की चासनी के साथ ज्वर को दूर करने के लिये देवे। इससे ज्वर का पाचन होता है। यदि दस्त न हुआ हो या कोष्टबद्धता हो तो इसको योग्यमाना से बड़ी हर्र तथा गुड़ के साथ देवे। यदि इसको अग्नि में डालकर इसका धूम्रपान किया जाय तो इससे हिचकी शांत होती है तथा दूब, अनार का फूल, मुलहठी और स्त्री-दुग्ध के साथ देने से भी हिचकी नहीं आती। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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