________________
वैद्य-सार
गुंजामात्रप्रमाणेन सन्निपाते च दारुणे | अनुपानप्रभेदेन प्रयोक्तव्यः सदैव सः ॥३॥ त्रयोदश सन्निपातान् नाशयत्याशु निश्चितम् ।
यमदण्डरसः ख्यातः पूज्यपादेन भाषितः ॥४॥ टीका-बंगभस्म सात भाग, शुद्ध पारा सात भाग, इन दोनों को खरल में डालकर मर्दन करे । पीछे उसमें ३॥ भाग शुद्ध गंधक मिलावे तथा आधा भाग तवकिया हरताल भस्म, प्राधा भाग शुद्ध विषनाग इन सब को एकत्रित घोंटकर कजली बना धतूरे के रस से मर्दन करके एक-एक रत्ती की गोली बनावे। अनुपान-भेद से उन कठिन से कठिन सन्निपात में भी सदैव प्रयोग करना चाहिये। यह यमदण्ड रस तेरह प्रकार के सन्निपातों को नाश करता है। यह पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ उत्तम योग है।
१३६-क्षयादौ बज्रेश्वररसः कर्षोंकणायोः सत्त्वञ्च पण्णिष्के हेमविद्वते । परिणष्कसूतं गंधं च ह्यष्टनिष्कं प्रवेशयेत् ॥१॥ प्रवालमुक्ताफलयोः चूर्ण हेमसमांशकम् । क्रमाद्वित्रिचतुनिष्कं मृतायः शीसबंगकान ॥२॥ चांगेर्यम्लेन यामैकं मर्दितं चूर्णितं पृथक् । निष्कद्वयनीलकटुकी व्योमायः कांततालकाः ॥३॥ अङ्कोलकं कुणीवीजतुत्थभस्मं पृथक् पृथक् । अष्टौ तु टंकणक्षारः वराटानां च विंशतिः ॥४॥ महाजंबीरनीरस्य प्रस्थद्वन्द्वन पेषयेत् । पिष्ट्वा रुद्धवा शरावे च भस्मीभूतं समाचरेत् ॥५॥ मधुना लोडितो लेह्यः तांबूलीस्वरसेन सः । वह्निदीप्तकरः शीघ्र धातून वर्धयतितराम् ॥६॥ अनुपानविशेषेण क्षयरोगधिनाशकः।
रसो वजेश्वरो नाम पूज्यपादेन भाषितः ॥७॥ टीका-१ तोला पीपल का सत ले १॥ तोला शुद्ध सोना पिघलाकर उसमें डाल देवे. और १॥ तोला शुद्ध पारा, २ तोला शुद्ध गंधक लेकर सब की कजली बनावे। पश्चात् १॥ तोला मोती घुटा हुआ, १॥ तोला प्रवाल घुटी हुई लेकर उसी में डाल दे और उसी में
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com