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________________ वैद्य-सार आधा तोला लौह की भस्म, पौन तोला शीसे की भस्म, १ तोला बंग भस्म डाल सब को खरल में एकत्रित कर चांगेरी के रस से १ प्रहर तक घोंट कर सुखा लेवे और उसमें छ:-छ: माशे नील की पत्ती, कुटकी, अनक-भस्म, कांतलौह भस्म, तवकिया हरताल भस्म, अकरकरा, कुणी का बीज़, तूतिया की भस्म, २ तोला सुहागे की भस्म, ५ तोला कौड़ी की भस्म देकर उसी में मिलावे तथा जंबीरी नींबू के दो सेर रस में घोंट एवं सुखा संपुट में बंद करके सुखा कर भस्म करे। इस भस्म को योग्य मात्रा से शहद तथा पान के स्वरस के साथ सेवन करे तो अग्नि दीप्त हो, धातुओं की पुष्टि होवे और अनुपानविशेष के बल से क्षयरोग का नाश करनेवाला यह बज्रेश्वररस पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ श्रेष्ठ है। १४०-द्राक्षादि काथः द्राक्षामधूकमधुकं कोद्रवश्वापि सारिवा । मुस्तामलकहीवेरपाकेशरपनकं ॥१॥ मृणालं चन्दनोशीरनीलोत्पलपरूषकः । द्राक्षादेः हिमसंयुक्तः जातीकुसुमेन वा ॥२॥ सहितो मधुसितालाजैर्जयत्यनिलपित्तजं । ज्वरं मदात्ययं छवि दाहमूर्छाश्रमभ्रमं ॥३॥ ऊर्ध्वाधोरक्तपित्तं च पांडुतां कामलामपि । सर्वश्रेष्ठहिमश्चायं पूज्यपादेन भाषितः ॥४॥ टीका-मुनक्का, महुवा, मुलहठी, कोद्रवधान्य, सारिवा, नागरमोथा, आंवला, सुगंधवाला, कमलकेशर, पद्माक्षचन्दन, उशीर, लालचन्दन, खस, नीलकमल, फालसा इन सब को बराबर-बराबर लेकर हिम (पांच प्रकार के काढ़े में से एक प्रकार का हिम काढ़ा में) बनावे और वह काढ़ो शहद, मिश्री, लाई, चमेली के फूल इन सब के साथ सेवन करे तो बातपित्त से उत्पन्न हुआ ज्वर तथा मदात्यय नाम का रोग, वमन, दाह, मूर्छा, भ्रम उर्ध्वग रक्त-पित्त, अधोग रक्तपित्त, पांडुरोग, कामला इत्यादि शांत होते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ योग पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ है। इस काढ़े को पकावे नहीं बल्कि सब दवाइयाँ रात को भींगो देवे तथा सुबह मल एवं छान कर पीये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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