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वैद्य-सार
से बड़ी गजपुट देवे। स्वांग शीतल हो जाने पर चूर्ण कर के संब चूर्ण से आधा शुद्ध गंधक, गंधक से आधा काली मिर्च का चूर्ण तथा उससे प्राधा सोंठ का चूर्ण मिला सब को बराबर मिलाकर घोंटकर तीन-तीन रत्ती की मात्रा से शहद तथा पान के रस के साथ सेवन करे। इसके ऊपर दूध को पथ्यरूप में सेवन करे और यदि इसका विषमज्वर में देना हो तो दूध भी न देकर लंघन करावे। यह चन्द्रमा की कांति के समान चन्द्रप्रभाकर नाम का रस राजयक्ष्मा को नाश एवं सब ज्वरों को अन्त करनेवाला है। यह एक माह के प्रयोग से शरीर की कांति को चन्द्रमा की कांति के समान बनाने तथा अनेक व्याधियों को नाश करनेवाला पूज्यपाद स्वामी ने कहा है।
१३५-ज्वरादौ संजीवनीय रसः हिंगुलशुद्धनिभागकं सुरसकं भागद्वयं चोषणं.। भागैकं नवनीतकेन मर्यः निंबुकरसेनैव च ॥१॥ सिद्धोऽयं रसराज एष मधुना देयस्त्रिदोषज्वरे।
संतापज्वरदाहनाशनपरः संजीवनीयो रसः ॥२॥ टीका-शुद्ध सिंगरफ, तीन भाग, खपरिया की भस्म दो भाग तथा काली मिर्च १ भाग इन सब को कपड़छन करके नैनू (मक्खन) म घोटे । पश्चात् नींबू के रस में तबतक घोटे जब तक उसकी चिकनाई न मिट जाय। जब वह गोली बांधने योग्य हो जाय तो गोलो बांध लेवे। इस गोली को शहद के साथ सेवन करे तो इससे त्रिदोषजन्य, संताप जन्य ज्वर एवं दाह की भी शांति होती है।
. १३६-सर्वज्वरे विद्याधररसः रसगंधार्कही धात्री रोहतनिवृतावरा । व्योषाग्निहिंगुलं शुद्ध टंकणं च विनिक्षिपेत् ॥१॥ जयपालं शुद्धकं चापि मर्दयेद्वनिवारिणा | दंतिकाथेन मर्यः शोषयेत् सूर्यरश्मिभिः ॥२॥ वदरास्थिप्रमाणेन वटिका कारयेद्भिषक् । गुडेन सह वटिकैका नित्यं सर्वज्वरापहा ॥३॥ अनुपानविशेषेण प्रतिश्यायज्वरापहः। पूज्यपादेन मुनिना प्रोक्तो विद्याधरो रसः ॥४॥
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