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________________ 50 वैद्य-सार १३४-विषमज्वरे प्रभाकररसः कर्ष शुद्धरसस्यापि द्विमासे चाम्लविद्रुते । नितिपेन्मर्दयेत्खल्वे परिणष्कं शुद्धगंधकं ॥१॥ तुत्याकोलकुणीवीजं शिलातालं चतुश्चतुः । तत्सम मृतलौहस्य निष्कौ द्वौ टंकणस्य च ॥२॥ तत्समं कुटकीनीलवराटांजनशुद्धकम्।। निष्कत्रयं सितं योज्यं सर्व चोक्तकमेण वै ॥३॥ शुभे मुहूर्ते शुभदिने खल्बमध्ये विमर्दयेत् । चांगेर्यम्लेन यामनीन् जवीराम्लैः दिनद्वयम् ॥४॥ पुटं हस्तप्रमाणं तु वसुसंख्यं तुषाग्निना । जंबीरस्य द्रवैरेव पिष्ट्वा पिष्ट्वा पचेत् पुटे ॥५॥ ततो वनोत्पलैरेव देयं गजपुटं महत् । आदाय चूर्णश्लक्ष्णं तु चूर्णाशं शुद्धगंधकं ॥६॥ तदर्धमरिचं चूर्ण तदर्धं पिप्पलीरजः। तदर्ध नागरजं चूर्ण चैकीकृत्य त्रिगुंजकम् ॥७॥ लेहयेन्मातिकैः साधं नागवल्लीरसेन च । पथ्यं दुग्धं विजानीयादभुक्तिः विषमज्वरे ॥८॥ चन्द्रकान्तिसमो नाम्ना रसश्चन्द्रप्रभाकरः। क्षयव्याधिविनाशश्च सर्वज्वरकुलांतकः ॥६॥ एकमासप्रयोगेण देहश्चन्द्रप्रभाकरः। कथित व्याधिविध्वंसो पूज्यपादेन निर्मितः ॥१०॥ टीका-शुद्ध पारा १ तोला लेकर उसको २ मास तक खटाई में मर्दन करे तत्पश्चात् २॥ तोला शुद्ध गंधक एक खरल में डालकर कजली बनावे, उसके बाद तूतिया की भस्म, अडोल के बीज, कुणी के बीज (तुनवृत्त), शुद्ध शिला, तवकिया हरताल की भस्म, लौह की भस्म एक-एक तोला तथा सुहागे की भस्म, कुटकी, नील की पत्ती, कौड़ी की भस्म, शुद्ध सरमा ये सब दवाएँ छः-छः माशे और नौ माशा मिश्री लेकर सब को एकत्रित करके शुभ दिन एवं शुभ मुहूर्त में खरल में डालकर चांगेरो के स्वरस से तीन प्रहर तक, जंबीरी नांबू के स्वरस से दो दिन तक घोटे एवं सुखाकर संपुट में बंद करके कपड़मिट्टी कर एक हाथ गहरे गड्डे में पुट लगावे। इस प्रकार आठ पुट दे। ये सब आठों पुट जंबीरी नींव के स्वरस से ही घोंट कर पुट तुष की अग्नि में देवे और अन्त में एक जङ्गली कण्डों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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