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वैद्य-सार
भृङ्गराजरसैमा वटिका माषमानका ।
ए हि क्षीरसंयुक्ता सर्वव्याधिविनाशिनी ॥२॥ टीका–काली मिर्च, सोंठ, कस्तूरी तथा पीपल, तामे की भस्म ये पांचों समान भाग लेकर भंगरा के रस से मर्दन करे और एक माशे की गोली बांध कर दूध के साथ रोग तथा रोगी के बलाबल के अनुसार देवे तो सर्व प्रकार की ज्याधि दूर हो।
१३२-विवन्धे विरेचनवटी रामवृक्षफलं सारं त्रिफला गुडमेव च। दंतितुत्थसमायुक्तं निष्कमात्रवटीकृतं ॥१॥ उष्णोदकं च ससितं वमने सौख्यमेव च ।
गुडक्षीरेण संयुक्तं वरेके च प्रशस्यते ॥२॥ टीका-अमलतास का गूदा, बड़ो हर्र का बकला, बहेरे का बकला, घला, पुराना गुड, शुद्ध जमालगोरा तथा तूतिया की भस्म ये सब बराबर-बराबर ले और गुड उतने परिमाण में दे कि जितने में गोली बंध जावे। इसकी तीन-तीन माशे की गोली बना कर एक-एक गोली मिश्री के साथ तथा गर्म पानी से सेवन करने से वमन सुखपूर्वक होता है। गर्म दूध एवं पुराने गुड के साथ सेवन करे तो उत्तम जुलाब हो।
टिप्पणी-यहाँ पर तुत्थ भस्म का पाठ आया है और वह भी सब के समान भाग ही है परंतु वह अधिक है। वद्यगण विचार कर उसकी मात्रा ग्रहण करें।
१३३-ज्वरादौ प्रतापमार्तण्डरसः विषटंकणजयपालं हिंगुलं क्रमवर्द्धितम् । तुलसीरस-संपिष्टं वटिकागुंजमात्रकाः ॥१॥ ज्वरादिनाशनश्चासौ विशेषैश्चानुपानकैः। ...
मार्तण्डप्रतापश्च पूज्यपादेन भाषितः ॥२॥ .. टीका-शुद्ध विषनाग, सुहागे की भस्म, शुद्ध जमालगोटा, शुद्ध सिंगरफ ये क्रम से एक भाग, दो भाग, तीन भाग, चार भाग लेकर खरल में घोंटकर तुलसी की पत्ती के रस से घोंट एक एक रत्ती के प्रमाण की गोली बनावे। यह अनुपान विशेष से ज्वर को नाश करवेवाला प्रताप मार्तण्डरस पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। : ....
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