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प्रकाशक की ओर से जर्मनी, अमेरिका और इंगलैण्ड आदि पश्चिम राष्ट्रों के विख्यात विद्वान् भी अब मानने लगे हैं कि संसार भर की चिकित्सा-प्रणालियों का जन्मदाता हमारा आयुर्वेद ही है। अपने दीर्घकालीन अविश्रान्त अनुसंधान के फलस्वरूप इतिहास-विशारदों का भी कहना है कि सर्वप्रथम बौद्धों ने चरक एवं सुश्रुत इन महान् प्रन्थों का अनुवाद पाली भाषा में करके जापान
और चीन देशों में फैलाया तथा आज भी उन देशों की चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद चिकित्सापद्धति से मिलती-जुलती है। इतना ही नहीं, अरबी भाषा के प्राचीन ग्रन्थों में भी अनेकत्र उल्लिखित चरकसुश्रुतों का उल्लेख दृष्टि-गोचर होता है। __ आयुर्वेदीय औषधों को ढूंढ़ निकालने वाले हमारे जितेन्द्रिय समदर्शी ऋषि-महर्षियों ने जंगलों में वास करते हुये केवल लोकहित के लिये इस ओर गम्भीर विचार के साथ विपुल परिश्रम किया है। निर्दोष, चमत्कारी एवं अधिक लाभकारी विशिष्ट औषधों को निर्माण करने के लिये स्वार्थ-शून्य विचार अधिक आवश्यक है। आयुर्वेद, ज्योतिष और मन्त्रवाद
आदि विद्याएं वास्तव में लोककल्याण के लिये ही पैदा हुई हैं। आजकल के चिकित्सकों में उपर्युक्त वे गुण बहुत ही कम मात्रा में मिलते हैं। इसीलिये आज हमारे आयुर्वेद की दशा इतनी गिर गई है। एक बात और है। आज हमारे आयुर्वेद-विद्वानों में इस विषय में परिपूर्णता प्राप्त कर नवीन नवीन आविष्कारों द्वारा आयुर्वेद के महत्त्व को संसार में प्रकट करने योग्य पण्डित भी नहीं हैं ! आजकल की आयुर्वेदाध्ययन की प्रणाली भी इस युग के अनुकूल नहीं है। अन्यान्य चिकित्सा-पद्धतियों में हमें प्रतिदिन नये-नये सुधार दृष्टिगत हो रहे हैं। परन्तु खेद की बात है कि हमारे बहुत से आयुर्वेदज्ञ अभी तक चरक-सुश्रुत युग का ही स्वप्न देख रहे हैं। ये सुधार नहीं चाहते हैं। अनुसंधान की ओर तो इनका लक्ष्य ही नहीं जाता। इसमें सन्देह नहीं है कि प्राचीन ऋषि-महर्षियों के प्रयोगों को ही थोड़ा-सा परिवर्तन कर अपने नाम से रजिष्ट्री कराने वाले वैद्य काफी मिलेंगे। किन्तु वास्तव में यह चीज उनको नहीं है। इस गुरुतर लोकोपकारी विद्या के लिये पसीना बहाने वाले हमारे यहाँ बहुत कम हैं। इसीलिये आज आयुर्वेद की अवस्था इतनी दयनीय हो गई है।
बहुधा बहुमूल्य एलोपैथिक औषध, सुई (इंजेक्शन) आदि के द्वारा आराम नहीं होने वाले सन्निपात, विषम ज्वर, क्षय, प्रसूत, संग्रहणी, मधुप्रमेह आदि असाध्य रोगों को हमारे पूर्वजों के द्वारा हजारों वर्षे के पूर्व.द्द निकाले गये मकरध्वज, जयमङ्गलरस, च्यवनप्राश, वसन्ततिलक एवं सुवर्णमस्म आदि अमूल्य औषध आसानी से दूर कर सकते हैं। आज मी विशुख विष किस रोगी को किस परिमाण में देना चाहिये, इस बात का विशद ज्ञान बड़े
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