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वैद्य-सार
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इसका काली मिर्च तथा महुए के फूल के साथ सेवन करने से तेरह प्रकार का सत्रिपात दूर हो जाता है। इस गोली को एक मास तक लगातार सेवन करने से सब प्रकार की व्याधि शांत हो जाती है। यह श्रीपूज्यपाद स्वामी की कही हुई प्रभावती बटी है।
११६-ज्वरादौ लघुज्वरां-कुशः रसगंधकताम्राणां प्रत्येकं चैकभागकम् । खल्वे सूर्याग्निभागांशं हयारि धूर्तवीजयोः ॥१॥ मातुलुंगरसेनैव मर्दयेद्वासर-त्रयम् । कासमर्दकतोयेन सिद्धोऽयं जायते रसः॥२॥ निंबमजाकरसैः बल्लो देयः त्रिदोषजित् । वरे दयोदनं पथ्यं शाकः स्याप्तण्डुलीयकः ॥३॥ सर्वज्वरविषघ्नोऽयं चानुपानविशेषतः।
लघुज्वरांकुशो नाम पूज्यपादेन भाषितः॥४॥ टीका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक; तामे की भस्म, ये तीनों एक एक भाग, शुद्ध कनेर की जड़ १२ भाग एवं शुद्ध धतूरे के बीज ३ भाग इन सब को एकत्रित कर विजोरा नीबू और कसोंदन के रस में/३ दिन तक मर्दन कर एक एक रत्ती की गोली बांध लेवे, फिर नीम को निबोड़ी की गिरी तथा अदरख के साथ तीन गोली देवे तो विदोषज ज्वर भी शान्त होवे । इस रस के ऊपर दही भात का भोजन करना तथा चौलाई का शाक खाना चाहिये। यह लघु ज्वरांकुश अनुपान-भेद से सब ज्वरों को नाश करनेवाला श्रीपूज्यपाद स्वामी ने कहा है।
११७-अनेकरोगे त्रिलोक-चूड़ामणि-रसः
पारदं टंकणं तुत्थं विषं लांगलिकं तथा । पुत्रजीवस्य मजा च गंधकं गुंजपत्रकम् ॥१॥ देवदाल्या रसैमद्यः त्रिपादीरसमर्दितः। विष्णुकांतानागदंतीधतूरनागकेशरैः ॥२॥ मर्दनं दिनमेकं तु वटबीजप्रमाणकम् । अंबीररसतो लेयं पानलेपननस्यके ॥२॥
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