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________________ (३५५) www.rrrrrrrr. ____माता ! मेरे समान पुत्रका मोही इस पृथ्वीतलमें कोई नहिं, यदि है तो तू कह ! माताने जवाब दिया राजन् ! तेरा पुत्रमें क्या अधिक मोह है ? सबका मोह तीनोंलोकमें बालकों पर ऐसा ही होता है। देख ! ! ! यद्यपि तेरे पिताके अभयकुमार आदि अनेक उत्तमोत्तम पुत्र थे तोभी बाल्य अवस्थामें पिताका प्यारा और मान्य तू था वैसा कोई नहिं था । प्यारे पुत्र ! तेरे पिताका तुझमें कितना अधिक स्नेह था ! सुन, मैं तुझै सुनाती हूं एक समय तेरी अंगुलीमें बड़ाभारी घाव होगया था उसमें पीव पड़ गया था । बहुत दुर्गंध आती थी जिससे तुझे बहुत पीड़ा थी । घावके अच्छे करनेके लिये बहुतसी दवाइयां कर छोड़ी तोभी तेरी वेदना शांत न हुई। उस तेरे मोहसे तेरे पिताने तेरे मुखमें अंगुली देदी और तेरी सब पीड़ा दूर करदी । माता चेलनाकी यह बात सुन दुष्ट कुणकने जवाब दिया ___माता ! यदि पिताका मुझमें मोह अधिक था तो जिस समय मैं पैदा हुआ था उससमय पिताने मुझै निर्जनवनमें क्यों फिकवा दिया था ? माताने जवाब दिया प्रिय पुत्र ! तू निश्चय समझ तेरे पिताने तुझै वनमें नहिं फिकवाया था किंतु तेरी भृकुटी भयंकर देख मैंने फिकवाया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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