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________________ numaav ( ३५४ ) भूपोंको इकट्ठा किया और उनकी सम्मतिपूर्वक बड़े समारोहके साथ अपना विशाल राज्य युवराज कुणकको दे दिया। अब पूर्वपुण्यके उदयसे युवराज कुणक महाराज कहे जाने लगे । वे नीतिपूर्वक प्रजाका पालन करने लगे और समस्त पृथ्वी उन्होंने चौरादिभय विवर्जित कर दी। कदाचित् महाराज कुणक सानंद राज्य कररहे थे अकस्मात् उन्हें पूर्वभवके वैरका स्मरण हो आया। महाराज मोणकको अपना वेरी समझ पापी हिंसक महा अभिमानी दुष्ट कुणकने मुनिकंठमें निक्षिप्त सर्पजन्यपापके उदयसे शीघ्रही उन्हें काठके पीजरेमें बंद करदिया। महाराज श्रेणिकके साथ कुणकका ऐसा वर्ताव देख रानी चेलनाने उसै बहुत रोका किंतु उस दुष्टने एक न मानी उल्टा वह मूर्ख गालि और मर्मभेदी दुर्वाक्य कहने लगा । खानकेलिये महाराजको वह रुखासुखा कोदोंका अन्न देने लगा और प्रतिदिन भोजन देते समय अनेक कुबचन भी कहने लगा। महाराज श्रेणिक चुपचाप कीलोंयुक्त पीजरेमें पड़े रहते और कर्मके वास्तविक स्वरुपको बानते हुऐ पापके फलपर विचार करते रहते थे। किसी समय दुष्टात्मा पापी राजा कुणक अपने लोकपाल नामक पुत्रके साथ सानंद भोजन कररहाथा । बालकने राजाके भोजनपात्रमें पेशाब करदिया। राजाने बालकके पेशाबकी ओर कुछ भी ध्यान न दिया वह पुत्रके मोहसे सानंद भोजन करने लगा और उसी समय उसने अपनी मातासे कहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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