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________________ ( २३९ ) जसा पवन परिपूर्ण रहता है संग्राम भी योधाओंके श्वासोच्छ्वास रूपी पवन से परिपूर्ण था । महासागरमें जैसा बडवानल होता है संग्राम में भी उसीप्रकार चमकते हुवे चक्र बडवानल थे । महासागर जैसा बेलायुक्त होता है उसीप्रकार संग्राम में भी समस्त दिशाओं में घूमते हुवे रूपी वेला थीं । सागरनें जैते नाव ओर जहाज संग्राममें भी घोड़ेरूपी नाव और जहाज थे । तथा संग्रामभ खङ्गधारी खड्गोंसे युद्ध करते थे । मुष्टियुद्ध करनेवाले मुष्टि ओंसे लड़ते थे । कोई कोई आपस में केश पकडकर युद्ध करते थे । अनेक वरिपुरुष भुजाओंसे लडते थे । पेरोंसे लडाई करनेवाले पैरोंसे लडते थे । शिर लड़ानेवाले सुभट शिर लड़ाकर युद्ध करते थे । बहुतसे सुभट आपसमें मुख भिड़ा कर लड़ते थे । गदाधारी और तीरंदाज गदाधारी और तीरंदाजों से लड़ते थे । घुड सवार घुडसवारोंसे, गजसवार गज सवारोंसे, रथसवार रथसवारोंसे, एवं पयादे पयादों से भयंकर युद्ध करते थे । उस संग्राम में अनेक वीर पुरुष शब्दयुद्ध करने वाले थे इसलिये वे शब्दयुद्ध करते थे । लट्ठी चलानेवाले लाट्ठयोंसे युद्ध करते थे । एवं राजा राजाओं से युद्ध करते थे । तथा शिलायुद्ध करनेवाले शिलाओं से, वांस युद्ध करने वाले सुभट वांसोंसे, वृक्ष उखाड़ कर युद्ध करनेवाले वृक्ष उखाड़ कर हलके धारक अपने हलोंते युद्ध करते थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat योधा - होते हैं www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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