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________________ इसप्रकार दोनों राजाओंका आपसमें कई दिन तक भयंकर युद्ध होता रहा । अंतमें जब वसुपालने यह देखा कि राजा चंड माद्योतन जीता नहीं जा सकता तो उसे बड़ी चिंता हुई वह उसके जीतनेके लिये अनेक उआय सोचने लगा___कदाचित् विहार करता करता उससमय मैं भी कौशांबीमें जा पहुंचा। मैंने जो वन फिलेके बिलकुल पास था उसीमें स्थित हो ध्यान करना प्रारंभ कर दिया । वहां ध्यान करते मालोने मुझे देखा । वह तत्काल राजा वसुपालके पास भागता भागता पहुंचा ओर मेरे आगमनका सारा समाचार राजासे कह सुनाया। सुनते ही राजा वसुपाल तत्काल मेरे दर्शनकेलिये आये। मेरे पास आकर उन्होंने भक्ति पूर्वक नमस्कार किया। राजा वमुपालके साथ और भी कई मनुष्य थे। उनमेंसे एक मनुष्यने मुझसे यह निवेदन किया-- प्रभो! कृपया राजा वसुपालको आप शत्रुओंकी ओरसे अभय दान प्रदान करें। इन्हें वैरियोंकी ओरसे कैसा भी भय न रहे। __मनुष्यकी रागद्वेष परिपूर्ण वात सुनकर मैंने कुछ भी उत्तर न दिया उस वनकी रक्षिका एक देवी थी ज्यों ही उसन या समाचार सुना आनी दिव्यवाणीसे उसने शीघ्र ही उत्तदिया-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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