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________________ ( १५६ ) उससमय अयोध्यपुरीमें कोई भरत नामका पुरुष निवास करता था। भरत चित्रकलामें अतिनिपुण था । कदाचित उसके मनमें यह अभिलाषा हुई कि यद्यपि मैं अच्छी तरह चित्रकला जानता हूं किंतु कोई ऐसा उपाय होना चाहिये कि लेखनी हाथमें लेते ही आपसे आप पट पर चित्र खिंच जावे। मुझै विशेष परिश्रम करना न पड़े । उससमय उसै और तो कोई तरकीव न सूझी । अपनो अभिलाषा की पूर्तिकेलिये उसने पद्मावती देवीकी आराधना करनी शुरू कर दी। दैवयोगसे कुछ दिन वाद देवी भरत पर प्रसन्न होगई । और उसने प्रत्यक्ष हो भरतसे कहा भक्त भरत ! मैं तेरे ऊपर प्रसन्न हूं। जिस वरकी तुझै इच्छा हो मांग मैं देने के लिये तयार हूं । देवीके ऐसे वचन सुन भरत अति प्रसन्न हुआ। और विनय भावसे उसने इस प्रकार देवासें निवदेन किया___मातः- यदि तू मुझपर प्रसन्न है । और मुझे वर देना चाहती है । तो मुझे यही वरदे जिससमय मैं लेखनी हाथमें लेकर वै→ । उससमय आपसे आप मनोहर चित्र, पटपर अंकित होजाय । मुझे किसीप्रकारका परिश्रन न उठाना पड़े। ___ देवीने भरतका निवेदन स्वीकार किया । तथा भरतको इसप्रकार अभिलषित वर दे देवी तो अंतर्लीन होगई । और भरत अपने वरकी परीक्षार्थ किसी एकांत स्थानमें वैठिगया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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